A hindi essay on मेरी दिल्ली मेरा अभिमान
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भारत की राजधानी दिल्ली का इतिहास बहुत पुराना है । प्राचीन समय से लेकर आज तक इसका रूप, रंग तथा नाम बदलता रहा है । यहीं पर कौरबों और पाण्डवों का युद्ध हुआ, श्रीकृष्ण ने पांचजन्य शंख का उद्घोष किया ।
यहीं महाराजा युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया और इसका नाम ‘इन्द्रप्रस्थ’ रखा । इस दिल्ली के सर्वप्रथम संस्थापक सूर्यवंशी राजा दिलीप थे । उस के पश्चात् धर्मराज युधिष्ठिर और अन्तिम हिन्दू सम्राट ‘पृथ्वी राज चौहान’ थे । उन्होंने इसका नाम दिल्ली रखा । उन्होंने ही मोहम्मद गौरी को 14 बार पराजित किया । यदि जयचन्द आक्रमणकारियों की सहायता न करते तो यह पराधीन न होती ।
दिल्ली का इतिहास अनेक बार रक्त रंजित हुआ है । अनेक आक्रमणकारी आये, जिनकी बर्बरता का स्मरण कर व्यक्ति कांप उठता है । तैमूर और नादिरशाह के कत्ले आम में खून की नदियाँ इसी दिल्ली की गलियों में बहीं ।
1857 के युद्ध में यह फिर रक्त में नहाई । मुसलमान शासकों और इसके पश्चात् अंग्रेजों ने 200 वर्ष तक यहां शासन किया । स्वतंत्रता प्रेमी यहां फांसी पर चढ़ाए गए । ‘स्वतंत्रता’ प्राप्ति के पश्चात् 15 अगस्त 1947 को लाल किला पर तिरंगा फहराया गया ।
सोने की चिड़िया कहलाने वाले इस देश को अनेक आक्रमणकारियों ने लूटा और अनेक राजाओं ने सजाया । लेकिन दिल्ली का सौन्दर्य दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही गया । आज भी दिल्ली यमुना नदी के दाहिने किनारे स्थित है । अनेक पड़ोसी राज्यों से घिरी हुई है ।
पहले यह केन्द्र शासित राज्य था, लेकिन अब यहाँ विधान सभा क्य निर्माण हो चुका है । स्वतंत्रत प्राप्ति के पश्चात् दिल्ली का पर्याप्त विस्तार हुआ । आज दिल्ली, सोनीपत और गाजियाबाद तक फैल गई है । सभी सांसद, मन्त्री और विदेशी राजदूत यहाँ रहते हैं । यहीं पर संसद भवन, राष्ट्रपति भवन तथा केन्द्रीय सचिवालय हैं ।
लाल किला, कुतुब मीनार, पुराना किला, फिरोजशाह कोटला, लोधी पार्क, मुसलमानों की जामा मस्जिद, हिन्दुओं का गौरी शंकर मन्दिर, बिडला मन्दिर, सिक्खों का गुरुद्वारा सीसगंज । निजामुद्दीन औलिया की दरगाह, हुमायुं का मकबरा और राजपूत राजा सवाई मानसिंह द्वारा निर्मित जन्तर-मन्तर भी यहीं हैं । प्राचीन समय में इसके द्वारा सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, नक्षत्रों की स्थिति क्य ज्ञान प्राप्त किया जाता था ।
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यहीं महाराजा युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया और इसका नाम ‘इन्द्रप्रस्थ’ रखा । इस दिल्ली के सर्वप्रथम संस्थापक सूर्यवंशी राजा दिलीप थे । उस के पश्चात् धर्मराज युधिष्ठिर और अन्तिम हिन्दू सम्राट ‘पृथ्वी राज चौहान’ थे । उन्होंने इसका नाम दिल्ली रखा । उन्होंने ही मोहम्मद गौरी को 14 बार पराजित किया । यदि जयचन्द आक्रमणकारियों की सहायता न करते तो यह पराधीन न होती ।
दिल्ली का इतिहास अनेक बार रक्त रंजित हुआ है । अनेक आक्रमणकारी आये, जिनकी बर्बरता का स्मरण कर व्यक्ति कांप उठता है । तैमूर और नादिरशाह के कत्ले आम में खून की नदियाँ इसी दिल्ली की गलियों में बहीं ।
1857 के युद्ध में यह फिर रक्त में नहाई । मुसलमान शासकों और इसके पश्चात् अंग्रेजों ने 200 वर्ष तक यहां शासन किया । स्वतंत्रता प्रेमी यहां फांसी पर चढ़ाए गए । ‘स्वतंत्रता’ प्राप्ति के पश्चात् 15 अगस्त 1947 को लाल किला पर तिरंगा फहराया गया ।
सोने की चिड़िया कहलाने वाले इस देश को अनेक आक्रमणकारियों ने लूटा और अनेक राजाओं ने सजाया । लेकिन दिल्ली का सौन्दर्य दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही गया । आज भी दिल्ली यमुना नदी के दाहिने किनारे स्थित है । अनेक पड़ोसी राज्यों से घिरी हुई है ।
पहले यह केन्द्र शासित राज्य था, लेकिन अब यहाँ विधान सभा क्य निर्माण हो चुका है । स्वतंत्रत प्राप्ति के पश्चात् दिल्ली का पर्याप्त विस्तार हुआ । आज दिल्ली, सोनीपत और गाजियाबाद तक फैल गई है । सभी सांसद, मन्त्री और विदेशी राजदूत यहाँ रहते हैं । यहीं पर संसद भवन, राष्ट्रपति भवन तथा केन्द्रीय सचिवालय हैं ।
लाल किला, कुतुब मीनार, पुराना किला, फिरोजशाह कोटला, लोधी पार्क, मुसलमानों की जामा मस्जिद, हिन्दुओं का गौरी शंकर मन्दिर, बिडला मन्दिर, सिक्खों का गुरुद्वारा सीसगंज । निजामुद्दीन औलिया की दरगाह, हुमायुं का मकबरा और राजपूत राजा सवाई मानसिंह द्वारा निर्मित जन्तर-मन्तर भी यहीं हैं । प्राचीन समय में इसके द्वारा सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, नक्षत्रों की स्थिति क्य ज्ञान प्राप्त किया जाता था ।
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