Hindi, asked by meghakatiyar1, 9 months ago

अाजादी के बाद भी हमारे देश के सामने बहुत सारी चुनाैंतियाँ हैं? आप समाचार-patra काे किस हद तक संवेदनशील पातेे हैं?

answer in hindi
and about 200-400 words..​

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Answered by Mankuthemonkey01
47

आजा़दी के बाद भी हमारे देश में बहुत सारी चुनौतियां हैं। आज़ादी के बाद भारतीयों की आशाएं थीं कि उनका भारत विश्वपटल पर अपना परचम फहराएगा और उन्हें वो सारी सुविधाएं उचित रूप से मिलेंगी जैसा कि विकसित देशों में होता है। किन्तु ये देश की विडम्बना ही है कि आज़ादी को हुए सत्तर वर्ष बीत चुके हैं लेकिन भारत उतनी उपलब्धियां हासिल नहीं कर सका है जितनी इसकी शक्ति है।

भ्रष्टाचार भारत के विकास में एक बाधा है। घूस खोरी, रिश्वत लेना इसी का रूप है। भ्रष्टाचार को रोकने को लेकर बातें तो खूब होती हैं, लेकिन कुछ ठोस कदम नहीं उठाए जाते। इसमें ना केवल सरकार का दोष है, अपितु जनता भी उतनी ही भागीदार है। रिश्वत देने वाले से बड़ा अपराधी लेने वाला होता है। आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी हिंदुस्तान के नाम का झंडा फहराने वाले जनता अगर भ्रष्टाचार खत्म करने में अक्षम है तो इससे ज़्यादा दुखी करने वाली बात क्या होगी?

महंगाई भ्रष्टाचार की ही उपज है। इससे सबसे ज्यादा परेशान मध्यम वर्गीय परिवार ही होते हैं। सरकारें केवल दूसरो को दोष देती हैं, लेकिन महंगाई दूर नहीं कर पातीं हैं।

अपराधों में भी भारत विश्व में ऊंचा स्थान रखता है। महिलाओं से जुड़े अपराधों में कमी न तो आयी थी और न ही आई है। आए दिन नारियों से की गई अभद्रता की खबरें मिलती रहती हैं। लूट पाट और चोरी डकैतियां तो इतनी मामूली बात हो गई हैं कि अगर किसी के यहां ना हुई हो तो वो शर्म महसूस करे!

कभी कभी ये बातें सोचने को मजबूर कर देती हैं कि क्या वाकई ये गांधी का देश है! दंगे फसाद की आशंकाएं बनी रहती हैं। सरकार और जनता के बीच का रिश्ता साफ नहीं है।

सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि भारत में कुछ हो ना हो, राजनीति हर विषय में होती है। इसके बाद भी भारत की राजनीति में राजनीति विज्ञान में रुचि रखने वाले कम, और राह चलते गुंडे नेता पहले बनते हैं।

खैर, आज़ादी के बाद भी भारत के विकास में जितनी चुनौतियां हैं उनको गिनने बैठेंगे तो केवल कॉपियां भरेंगी। परेशान कर देने वाली बात यह है कि भारतीय मीडिया इन परेशानियों को दिखाने और दूर करने की सोचने के बजाय पड़ोसी देश से युद्ध होने की बात करती हैं। हालात यह हो गए हैं कि आदमी अपने देश को कम, पड़ोसी देश को ज्यादा जानने लगा है। समाचार पत्र इस मामले में कुछ खास तो नहीं, किन्तु आधुनिक मीडिया से बेहतर हैं। घटनाओं का आदान प्रदान समाचार पत्र अच्छे से करते हैं। बात उनकी संवेदनशीलता की हो तो यह कहना गलत नहीं होगा कि समाचार पत्र काफी हद तक निष्पक्ष होते हैं, लेकिन कहीं ना कहीं उनके अंदर भी पक्षपात के लक्षण नजर आ ही जाते हैं। लेकिन फिलहाल आधुनिक मीडिया को देखते हुए बेहतर यही है कि व्यक्ति समाचार पत्रों की ओर अपना झुकाव करे।

Answered by jayathakur3939
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आज़ादी के बाद भी हमारे देश के सामने  बहुत सारी चुनौतियाँ आई हैं जैसे  

महंगाई :  सबसे बड़ी चुनौती है। इसका सबसे ज्यादा असर होता हम  मध्यम वर्गीय लोगों पर । जब भी कोई नई सरकार आती है तो वह बड़े-बड़े वादे करती है महंगाई दूर करने के, लेकिन सब अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं सिर्फ एक दूसरे को दोष देते रहते हैं पर महंगाई दूर करने कि कोशिश भी नहीं करते | इस महंगाई की चक्की में आम आदमी और उसका परिवार पीसता रहता है | हमारे देश के अमीर लोग इस महंगाई के सबसे अधिक ज़िम्मेदार है | इस कारण हे हमारा देश आज तक तरक्की नहीं कर पाया है |  

अपराध:  महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों को देखते  हुए यह कहना गलत नहीं है कि महिलाएं इस सदी में भी महफूज नहीं है | महिलाओं से जुड़े अपराध चाहे वह घर में हो या घर से बहार कोई कमी नहीं आई है | हर रोज अखबारों में औरतों पर हो रहे अत्याचारों की खबर हर पन्ने पर नज़र आती है| अपराध ने अपना शिकंजा इस कदर कस लिया ही कि मासूम बच्चे भी इसकी चपेट में आ गए हैं |

औरतों के साथ घरों में होने वाले अपराधों में भी कोई कमी नहीं आई है | आज भी दहेज के लिए बहुओं को जला दिया जाता है और बेटा न होने पर घर से निकाल दिया जाता है | छोटे बच्चों का शोषण हो रहा है | बाल मजदूरी करवाई जा रही  है | भारत जैसे देश में कहा जाता है  कि, जहां नारियों की इज्ज़त होती है, वहां भगवान् वास करते हैं |फिर भी यहाँ पर महिलाओं पर अन्य देशों की तुलना में ज्यादा  अपराध होते है |इन अपराधों को रोकने कि एक ही उपाय है कि हमें औरतों के प्रति अपनी सोच बदलनी पड़ेगी | और उन्हें समाज मैं बराबरी का हक देना होगा |  

हम और आप औरतों के बिना समाज कि कल्पना तक नहीं कर सकते हैं | वही समाज का मूलबूत अंग होती हैं , तो हम क्यों भूल जाते हैं और क्यों उन्हें इस तरह कि प्रताड़ना से गुजरना पड़ता है |  

भ्रष्टाचार  दो शब्दों से मिलकर बना है  भ्रष्ट + आचार |  भ्रष्ट का अर्थ है बिगड़ा हुआ आचार का अर्थ है आचरण जो किसी भी प्रकार से अनुचित हो| जब लोग अपने स्वार्थों की पूर्ति करने के लिए न्याय  के नियमों के विरूद्ध जा कर काम करते हैं ऐसे लोग भ्रष्टाचारी कहा जाता है |

भ्रष्टाचार के कई रूप है जैसे घूस खोरी,  रिश्वत लेना और देना, काला बाजारी, टैक्स चोरी, चुनाव में धांधली, परीक्षा में नक़ल, ज़बरदस्ती चंदा लेना, वोट के लिए पैसे देना, जान- बुझकर दाम बढ़ाना , सस्ता सामान लाकर महंगा बेचना आदि सब भ्रष्टाचार ही तो है | रिश्वत लेने वाला भी उतना हे अपराधी है जितना कि रिश्वत देने वाला | भ्रष्टाचार को रोकने के लिए हमारे नेता बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते हैं पर करते कुछ भी नहीं | इसमें ना केवल सरकार का दोष है हम लोग भी उतने ही भागीदार है |अपना काम करवाने के लिए रिश्वत लेते भी हैं और देते भी हैं | भ्रष्टाचार को तो हम ही बढ़ावा दे रहे हैं |

भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर दंड व्यवस्था की जानी चाहिए नहीं तो यह भ्रष्टाचार नाम की दीमक पूरे देश को खा जाएगी अगर बात करें मीडिया कि तो वह एन चुनौतियों पर बात करने की बजाए और ही मुद्दों पर बहुत सवाल जवाब करता है | बात किसी भी विषय कि हो पर बीच में राजनीति आ ही जाती है | मीडिया में फैशन की मनोरंजन या फिर राजनीति की ही बातें होती है | लेकिन अगर बात समाचार पत्रों की करें तो हाँ, उन्हें संवेदनशील कहा जा सकता है क्योंकि |

आधुनिक युग में शासकों को सबसे अधिक भय जिसका है वह है समाचार पत्र, यह देश की जनता और सरकार के बीच संवाद करने का सबसे अच्छा तरीका है | किसी भी मुद्दे के बारे में आम जनता में जागरूकता बढ़ाने के लिए समाचार पत्र सबसे अच्छा तरीका है | समाचार पत्र ज्ञान वर्धन साधन होते हैं | इसलिए हमें उनका नियमित रूप से अध्ययन करने की आदत डालनी चाहिए |  

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