(अ) कौन लोग अपने तन-मन को मिट्टी में मिला देते हैं ?
(ब) संसार की रचना में दोष निकालना क्यों व्यर्थ हैं ?
(स) प्रस्तुत काव्यांश के माध्यम से कौन-सी प्रेरणा दी गई हैं ?
(द) कवि ने मिट्टी की महिमा का बखान करते हुए क्या कहा है ?
(ध) प्रस्तुत काव्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
Answers
मिट्टी तन है मिट्टी मन है, मिट्टी दाना-पानी है।
मिट्टी ही तन बदने हमारा, सो सब ठीक कहानी है।
पर जो उल्टा समझ इसे ही बने आप ही ज्ञानी है।
मिट्टी करता है जीवन को और बड़ा अज्ञानी है।
समझ सदा अपना तन मिट्टी, मिट्टी में जो रमाता है।
मिट्टी करके सर बस अपना, मिट्टी में मिल जाता है।
जगत है सच्चा, तनिक न कच्चा, समझो बच्चों इसका भेद |
खाओ पीओ कर्म करो नित, कभी न लाओ मन में खेद।
रचा उसी का है यह जग तो, निश्चय उसको प्यारा है।
इसमें दोष लगाना अपने लिए दोष का द्वारा है।
ध्यान लगाकर जो देखो, तुम सृष्टि की सुधराई को
बात-बात में पाओगे तुम उस सृष्टा की चतुराई को
चलोगे सच्चे दिल जो तुम निर्मल नियमों के अनुसार
तो अवश्य प्यारे जानोगे, सारा जगत सच्चाई सार।
(अ) कौन लोग अपने तन-मन को मिट्टी में मिला देते हैं ?
► जो अपने तन को मिट्टी न समझ कर बड़ी-बड़ी बातें करता है, और स्वयं के ज्ञानी होने का दंभ भरता है, वो अपने तन-मन को मिट्टी में मिला देता है, अर्थात अपने तन-मन को नष्ट कर देता है।
(ब) संसार की रचना में दोष निकालना क्यों व्यर्थ हैं ?
► संसार की रचना में दोष निकालना इसलिये व्यर्थ है, क्योंकि जिसने इस जग की रचना की है, अर्थात ईश्वर ने, तो उसने कुछ सोच-समझ कर ही इस जग की रचना की होगी।
(स) प्रस्तुत काव्यांश के माध्यम से कौन-सी प्रेरणा दी गई हैं ?
► प्रस्तुत काव्यांश के माध्यम से ये प्रेरणा दी गयी है कि ये तन मिट्टी का ही बना है, और इस पर अहंकार करना व्यर्थ है। ये तना क्षणभंगुर है, यानि एक न एक दिन इसको नष्ट हो ही जाना है।
(द) कवि ने मिट्टी की महिमा का बखान करते हुए क्या कहा है ?
► कवि ने मिट्टी की महिमा बखान करते हुए कहा है, कि हम सभी प्राणी, ये भौतिक जगत और संसार के सभी पदार्थ मिट्टी से ही निर्मित है, और एक न एक दिन उनको नष्ट हो जाना है।
(ध) प्रस्तुत काव्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
► चूँकि इस काव्यांश में मिट्टी का महिमा गुणगान किया है, इसलिये इस काव्यांस का उचित शीर्षक होगा...
मिट्टी की महिमा
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