अंकीया नात पर एस्से लिखिए।
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अंकिया नाट(परंपरागत असमी एिांिी नाटि) महापरुुष श्रीमंत शंिरदेव िी रचनात्मि प्रततभा िे वास्तववि
सचू ि हैं। येनाटि,पवू वआधतुनि िाल िे असमी िठपतु ली नत्ृय व ओझा-पाली िे सयं क्ुत प्रारूप सेतनर्मवत हैं
और शंिरदेव द्वारा असम में प्रस्ततु सस्ं िृत नाटिों मेंअपनाई जानेवाली तिनीि और प्रकियाओं िी तरह
दसू रेरंगमंच संस्थानों में भी इन्हे अंकिया नाट िहा जाता है।
यद्यवप महापरुुष शंिरदेव और माधवदेव द्वारा रचचत नाटि लोिवप्रय स्वीिायवता प्राप्त िर चुिे है, लेकिन
अंकिया नाटशब्द शंिरदेव िे जीवनिाल में मौजूद नहीं था । इस नामिरण िो िे वल आगेआनेवालेसमय में
ही लोिवप्रयता र्मली। शंिरदेव और माधवदेव द्वारा र्लवपबद्ध, बारह ऐसेनाटि दस्तावेजों में पायेजातेहैं। िुछ
चररत्न पथु ी (जीवतनयााँ) िे अनसु ार शंिरदेव ने‘चचहना यात्रा’ िे तनरूपण सेनाट्य लेखन प्रारम्भ किया और आगे
चलिर िुछ और रचनाएाँिीं । ‘चचहना-यात्रा' िी िोई र्लखखत र्लवप नहीं हैऔर न ही उनिे किसी अन्य नाटि
िी र्लखखत र्लवप है। उनिे द्वारा रचचत 6 नाटि हैं- ‘ िार्लया दमन’, ‘पत्नी-प्रसाद’, ‘िे र्ल गोपाल’, ‘रुक्क्मणी
हरण’, ‘पाररजात हरण’, और ‘राम बबजय’। माधवदेव िे नाटि हैं- ‘चोर-धारा’, ‘वप ंपरा गचु ुआ’, ‘भोजन बबहार’,
‘अजुनव भंजन’, ‘भूम लेतोवा' और ‘नृसहं यात्रा’। माधवदेव िे इन 6 नाटिों िो 'झूमरा' भी िहा जाता है।
अंकिया नाट िो अंकिया भावना भी िहा जाता है। इन दोनों शब्दावर्लयों में िोई महत्वपणू व अंतर नहीं है।
नाटलेखि िे दस्तावेज़ िो इंचगत िरता हैऔर भावना नाटि िा प्रदशवन है। दोनों शब्द परस्पर पररवतवनीय हैं।
भावना िा प्रदशवन प्रायः सत्र या गााँव िे नामघर में किया जाता है। नामघर में दशविों िे र्लए पयावप्त स्थान
देनेिे र्लए, बरामदे िे दोनों भागों िा ववस्तार िर वैिक्पपि व्यवस्था (राभाघर) िी जाती है। भावना िे
वास्तववि प्रदशवन िे पवू व िमविांडों िा एि लम्बा िम अपनाया जाता है। ऐसेिमविाण्डों िी शरुुआत नाटि
(नातमें ला) िे प्रारम्भ में ही िम सेिम एि रात पहलेहो जाती है। उद्घाटन िमविाण्ड नामिीतवन और
नामघर में सम्पणू वनाटि िे पाठन सेतनर्मवत होता है। बड़ी संख्या में लोग समारोह में भाग लेतेहैं। तब
नाटि िा पवू ावभ्यास प्रारम्भ होता है। प्रततददन एि िलािार अपनेप्रदशवन िे किए आशीवावद प्राप्त िरनेिे र्ल
Explanation:
सरई (दालों और चनेसेभरी तश्तरी) िा प्रस्ताव िरता है। पवू वददवस िो ‘बराखरा’ (मख्ु य पवू ावभ्यास) िहा जाता
हैक्जसमेंसम्पणू वनाटि िा पणू वऔर अंततम पवू ावभ्यास मंचचत किया जाता है। जो पनु ः गााँव िे वयो-वद्धृ लोगों
सदहत बड़ी भीड़ िा साक्षी बनता हैतथा जो िलािारों िो छोटे-मोटे सधु ारों िे संबंध मेंसलाह देतेहैं। अंततम
तैयारी िो मतू रूव प देनेिे र्लए राभाघर स्वयंसेवा, बैठनेिी व्यवस्था, प्रिाश, पररधान, सौन्दयव-प्रसाधन, मखु ौटों,
पतु लों और अन्य परूि वस्तओु ं सदहत सभी आवश्यि व्यवस्थाओं िे संबंध मेंसहभाचगयों, ग्रामीण यवु ाओं और
क्जम्मेदार व्यक्क्तयों िो सौंपेजानेवालेिायों िे संबंध मेंववचार-ववमशवकिया जाता है।
ग्रामीण पयववेक्षिों द्वारा प्राथवनाओं (नाम-िीतवन) िे सामदूहि जाप िे साथ प्रदशवन िा ददन उत्सवपणू वहोता है।
मख्ु य भूमिा तनभानेवालेव्यक्क्त व्रत रखतेहैंऔर बाधा-रदहत प्रदशवन तथा किसी घटाव या जुड़ाव हेतुपववत्र
जमघट िा आशीवावद प्राप्त िरतेहैं।
एिािी नाटिों िे लक्षण:
सभी एिािी नाटिों मेंिुछ सामान्य और समान लक्षण पाए जातेहैं, जो तनम्नर्लखखत हैं:
(i) सत्रूधार (वातावलापी) िा प्रभत्ुव:
सत्रूधार अंकिया नाटमेंपयावप्त रूप सेप्रभावशाली भूमिा तनभाता है। अर्भनय िे माध्यम सेअसम िे लोगों िे
आध्याक्त्मि स्तर िो ऊं चा उठाने, समाज िे सभी वगों िे बीच भगवान िृष्ण िी भक्क्त िे आदशों िा प्रसार
िरनेतथा भावना(नाटि) िी भूमिा िो िे वल लोगों िे मनोरंजन िे स्रोत ति सीर्मत न रखनेिे र्लए शंिरदेव
नेअपनी िापपतनि शक्क्त िे अनसु ार सत्रूधार िो प्रस्ततु किया। सत्रूधार िी भूमिा िो आमखु (पवू रव ंग) ति
सीर्मत रखनेिे बजाय वेइस भूमिा िा प्रयोग सम्पणू वनाटि िे पात्रों िे बीच समन्वय स्थावपत िरनेतथा
नाटि और इसिे दशविों िे बीच िड़ी िे रूप मेंिरतेहैं। इसिे अततररक्त िहानी िे समय और स्थान िे अनसु ार,
सत्रूधार िा प्रयोग नाटि िे अबाध तनष्पादन िो सतुनक्श्चत िरनेिे र्लए किया जाता है। शंिरदेव नेइस पात्र िो
नाटि िे तनदेशि िे रूप मेंभी प्रस्ततु किया है। श्रोताओं िे सम्मखु नाटि िे भावों िी उद्घोषणा िे अततररक्त,
आमखु िे दौरान सत्रूधार गातेहुए नतवि तथा एि प्रशंसि िे रूप मेंभी िायविरता है।