Biology, asked by anantsuraj23, 5 hours ago

। अंखिया हरि-दरसन की भूखी।
कैसे रहैं, रूपरसराची ये बतियाँ सुनि रूखी ॥
अवधि गनत इकटक मग जोवत तब एती नहिं झूखी।
अब इन जोग-संदेसन ऊधौ अति अकुलानी दूखी।
वारक वह मुख फेरि दिखाओं, दुहि पय पियत
पतूखी॥
सूर सिकत हरि नाव चलायो ये सरिता हैं सूखी॥ संदर्भ प्रसंग। व्याख्या कीजिए​

Answers

Answered by krishna989891
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Answered by amishasingh2311
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Answer:

यहां कवि कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति को प्रदर्शित करते हुए कहना चाहते हैं कि आंखें मात्र हरी का ही दर्शन करना चाहती हैं, वह कमल नयन उस ईश्वर को देखना चाहती हैं और उनका दर्शन ना कर पाने के कारण वह उदास रहती हैं। यहां गोपियां के माध्यम से कवि कह रहे हैं कि ऊधौ कृष्ण का संदेश लेकर आए लेकिन चूंकि कृष्ण तो साथ नहीं लाए इसलिए यह फांसी के समान अनुभव होता है

Explanation:

प्रस्तुत पद  पाठ्यपुस्तक में संकलित सूर रचित सूरसागर के भ्रमर गीत प्रसंग से लिया गया है। इस पद में गोपियाँ श्रीकृष्ण के उस रूप का दर्शन करना चाहती हैं, जिसमें वह पत्तों के दोनों में दूध दुहकर पिया करते थे।

उद्धव द्वारा हठपूर्वक बार-बार श्रीकृष्ण द्वारा भिजवाए गए योग साधना के सन्देश को सुनाए जाने पर गोपियाँ उनके विवेक पर तरस खाते हुए कहती हैं-हे उद्धव! क्या आप अभी तक नहीं समझ पाए कि हमारी आँखें प्रिय श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए लालायित हैं।

गोपियाँ कहती हैं कि हे उद्धव, हमारी आँखें तो मात्र श्रीकृष्ण के दर्शन की भूख से पीड़ित हैं। वे आपकी योग शास्त्र-विषयक इन नीरस बातों को सुनकर कैसे जीवित रह सकती हैं? जब ये आँखें अपलक श्रीकृष्ण के आगमन की अवधि की गणना करती हुई उनका मार्ग देख रही थीं तब इतनी दु:खी नहीं थीं लेकिन अब तो इन योग के संदेशों को सुनकर बहुत व्याकुल और दु:खी हो गई हैं। उद्धव, तुम हमें कृष्ण की वह छवि पुनः दिखला दो जब वे वन में पत्तों के पात्र में गायों का दूध दुह कर पीते थे। हे उद्धव, तुम हठ करके बालू में नाव मत चलाओ क्योंकि ये नदियाँ सूखी हैं। अभिप्राय यह है कि जैसे बालू में नाव नहीं चलाई जा सकती, उसी प्रकार योगियों के लिए उपयुक्त यह योग-साधना गोपियों को नहीं बताई जा सकती।

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