Hindi, asked by Anonymous, 10 months ago

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Answered by Raunak1432
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Explanation:

भारत में पेयजल संकट एक प्रमुख समस्या है। भूमिगत जल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है और इस वजह से पीने के पानी की किल्लत बढ़ रही है। सिकुड़ती हरित पट्टी इसका मुख्य कारण है। पेड़ों से जहां पर्याप्त मात्र में वर्षा हासिल होती है, वहीं यही पेड़ भूमिगत जल का स्तर बनाए रखने में भी अहम् भूमिका निभाते हैं। लेकिन, द्रुत गति से होने वाले विकास कार्यों ने हमारी हरित पट्टी की तेजी से बलि ली है। उसी का नतीजा है कि न सिर्फ भूमिगत जल का स्तर नीचे गया है, बल्कि वर्षा में भी लगातार कमी आई है।

गौरतलब है कि भारत में 200 साल पहले लगभग 21 लाख, सात हजार तालाब थे। साथ ही, लाखों कुएं, बावड़ियाँ, झीलें, पोखर और झरने भी। हमारे देश की गोदी में हजारों नदियां खेलती थीं, किंतु आज वे नदियां हजारों में से केवल सैकड़ों में ही बची हैं। वे सब नदियां कहां गई, कोई नहीं बता सकता।

जिस भारत में 70 प्रतिशत हिस्सा पानी से घिरा हो, वहां आज स्वच्छ जल का उपलब्ध न हो पाना विकट समस्या है। आज देश में करीब 60 करोड़ लोग पानी की गंभीर किल्लत का सामना कर रहे हैं। करीब दो लाख लोग स्वच्छ पानी न मिलने के चलते हर साल जान गंवा देते हैं। नीति आयोग द्वारा जारी 'समग्र जल प्रबन्धन सूचकांक' रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। जिसमे कहा गया है,

सन 2030 तक देश में पानी की मांग उपलब्ध जल वितरण की दोगुनी हो जाएगी। जिसका मतलब है कि करोड़ों लोगों के लिए पानी का गंभीर संकट पैदा हो जाएगा और देश की जीडीपी में छह प्रतिशत की कमी देखी जाएगी। इस बड़ी समस्या को अकेले या कुछ समूह के लोग मिलकर नहीं सुलझा सकते हैं, भविष्य में जल की कमी की समस्या को सुलझाने के लिये जल संरक्षण ही जल बचाना है।

वर्षा जल संचयन कई मायनों में महत्वपूर्ण है। वर्षा जल का उपयोग घरेलू काम मसलन घर की सफाई प्रयोजनों, कपड़े धोने और खाना पकाने के लिए किया जा सकता है। वहीं औद्योगिक उपयोग की कुछ प्रक्रियाओं में इसका उपयोग किया जा सकता है। गर्मियों में वाष्पीकरण के कारण होने वाली पानी की किल्लत को 'पूरक जल स्रोत' के द्वारा कम किया जा सकता है। जिससे बोतलबंद पानी की किमतें भी स्थिर रखी जा सकेगी। यदि एक टैंक में पानी का व्यापक रूप से संचयन करे, तो साल भर पानी की पूर्ति के लिए हमें जलदाय विभाग के बिलों के भुगतान से निजात मिल सकती हैं।

वहीं वर्षा जल संचयन को छोटे-छोटे माध्यमों में एकत्रित करके हम बाढ़ जैसे महाप्रयल से बच सकते हैं। इसके अतिरिक्त वर्षा जल का उपयोग भवन निर्माण, जल प्रदूषण को रोकने, सिंचाई करने, शौचालयों आदि कार्यों में बेहतर व सुलभ ढंग से किया जा सकता है। जो हमारे लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

भारत में पेयजल संकट एक प्रमुख समस्या है। - फोटो : अमर उजाला

वर्षा जल संचयन के लिए वर्तमान में कई वैज्ञानिक व परंपरागत विधियां प्रयोग में लाई जा रही हैं। यहां कुछ ऐसी ही विधियों व प्रणाली का उल्लेख किया जा रहा हैं, जो वर्षा जल संग्रह में सहायता कर सकती हैं। सतह

जल संग्रह प्रणाली- भू-सतह पर गिरने वाले पानी को भूतल में जाने से रोकने के लिए इस प्रणाली को उपयोग में लाया जाता है। इस प्रणाली के उदाहरणों में नदी, तालाब और कुएं शामिल हैं। ड्रेनेज पाइप का उपयोग इन प्रणालियों में पानी के निर्देशन के लिए किया जा सकता है।

इस तरह पानी को इन स्रोतों से प्राप्त करके अन्य प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। छत प्रणाली - यह वर्षा जल संग्रहण की सबसे उत्तम व आसान विधि है। इस विधि से संचित पानी को किसी अन्य माध्यम से स्वच्छ किये बिना ही इसका मानवहित में उपयोग किया जा सकता है। इसके जरिये छत पर गिरने वाले पानी को कंटेनरों या टैकों में निर्देशित किया जाता है, इन टैंकों को आम तौर पर ऊंचा किया जाता है, जब टैप खोला जाता है, पानी उच्च दबाव में बह जाता है।

बांध - वर्षा जल संचयन की यह विधि व्यक्तिगत तौर पर महंगी व सुलभ नहीं है पर सार्वजनिक व सरकारी तौर पर बांध परियोजनाओं का सफल निर्माण बारिश के जल को संग्रहित करने में काफी कारगर साबित हो सकता है। बांध जैसे प्रकल्पों में जलराशि को लंबे समय तक बांधकर इसका उपयोग नहरों के माध्यम से सिंचाई के प्रयोजनों के लिए किया जा सकता है। इसके लिए सरकार को बांध निर्माण परियोजना पर जोर देना चाहिए।

भूमिगत टैंक - इस प्रणाली के तहत छत पर एकत्रित जल को पाइप के माध्यम से भूमि पर बनाये गये टैंक में संग्रहित किया जाता है। पानी बाहर निकालने के लिए पंपों का उपयोग किया जाता है। अंडरग्राउंड टैंक बारिश के पानी की कटाई के लिए बहुत अच्छा है, क्योंकि इससे जल वाष्पीकरण की दर कम हो जाती है। बारिशुसर - जिस प्रकार तौलिया जल को शीघ्र ही सोख देता है। उसी प्रकार विभिन्न छतरियों व उल्टे फनल को एक पाइप से जोड़कर वर्षा जल को एकत्रित किया जा सकता है।

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