अ) निम्नलिखित पद्यों की ससन्दर्भ व्याख्या
0 सुखं हि दुःखान्यनुभूय शोभते
घनान्धकारेष्विव दीपदर्शनम्।
सुखात्तु यो याति नरो दरिद्रतां
धृतः शरीरेण मृतः स जीवति ॥
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सुखं हि दुःखान्यनुभूय शोभते घनान्धकारेष्विव दीपदर्शनम्
सुखात्तु याति नरो दरिद्रतां धृतः शरीरेण मृतः स जीवति ।।
(शूद्रकरचित मृच्छकटिकम्, अंक प्रथम, श्लोक १०)
जिस प्रकार घने अंधकार में प्रज्वलित दीप के दर्शन पाना सार्थक और वांछित होता है उसी प्रकार दुःखों की अनुभूति के बाद ही सुखप्राप्ति के आनंद की अर्थवत्ता है । लेकिन जो मनुष्य सुखों के बाद दुःखों के गर्त में गिरता है वह शरीर धारण किये हुए मृत व्यक्ति के समान होता है ।
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the happiness after unhappiness is good it is like a sight of lamp.
the unhappiness after happiness is like poverty.
the person with decayed body like a dead
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