. (अ) 'पाप के चार हथियार' पाठ का संदेश लिखिए।
(आ) 'पाप के चार हथियार' निबंध का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
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Answer:
मानवजीवन में दो और दो चार का नियम सदा ... निराशा के समान दूसरा पाप नहीं। ... मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।
पाप के चार (4) हथियार। 1. उपेक्षा 2. निंदा 3. हत्या 4. श्रद्धा ~ कन्हैया लाल ...
1) 'पाप के चार हथियार' पाठ में लेखक कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' ने एक ज्वलंत समस्या की ओर ध्यान आकर्षित किया है। संसार में चारों ओर पाप, अन्याय और अत्याचार व्याप्त है, फिर भी कोई संत, महात्मा, अवतार, पैगंबर या सुधारक इससे मुक्ति का मार्ग बताता है, तो लोग उसकी बातों पर ध्यान नहीं देते और उसकी अवहेलना करते हैं। उसकी निंदा करते हैं। इतना ही नहीं, इस प्रकार के कई सुधारकों को तो अपनी जान तक गँवा देनी पड़ी है। लेकिन यही लोग सुधारकों, महात्माओं की मृत्यु के पश्चात उनके स्मारक और मंदिर बनाते हैं और उनके विचारों और कार्यों का गुणगान करते नहीं थकते। जो लोग सुधारक के जीवित रहते उसकी बातों को अनसुना करते रहे, उसकी निंदा करते रहे और उसकी जान के दुश्मन बने रहे, उसकी मृत्यु के पश्चात उन्हीं लोगों के मन में उसके लिए श्रद्धा की भावना उमड़ पड़ती है और वे उसके स्मारक और मंदिर बनाने लगते हैं।
इस प्रकार लेखक ने 'पाप के चार हथियार के द्वारा यह संदेश दिया है कि सुधारकों और महात्माओं के जीते जी उनके विचारों पर ध्यान देने और उन पर अमल करने से ही समस्याओं का समाधान होता है, न कि स्मारक और मंदिर बनाने से।
2) संसार में पाप, अत्याचार और अन्याय का बोलबाला रहा है और आज भी वह वैसा ही है। इससे लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए अनेक महापुरुषों, सुधारकों, समाज सेवकों एवं संत महात्माओं ने अथक प्रयास किया, पर वे अपने प्रयास में सफल नहीं हो पाए। उल्टे उन्हें समाज के लोगों की उपेक्षा तथा निंदा आदि का शिकार होना पड़ा और कुछ लोगों को अपनी जान भी गँवानी पड़ी। पर देखा यह गया है कि जीते जी जिन सुधारकों और महापुरुषों को समाज का सहयोग नहीं मिला और उनकी अवहेलना होती रही, मरने के बाद उनके स्मारक और मंदिर भी बने और लोगों ने उन्हें भगवान-सुधारक कह कर वंदनीय भी बताया।
यहाँ लेखक यह कहना चाहते हैं कि मरणोपरांत सुधारक का स्मारक-मंदिर बनना सुधारक और उसके प्रयासों दोनों की पराजय है। अच्छा तो तब होता, जब लोग सुधारक के जीते जी उसके विचारों को अपनाते और पाप, अत्याचार और अन्याय जैसी बुराइयों के खिलाफ संघर्ष में उसका सहयोग करते और समाज से इन बुराइयों के दूर होने में सहायक बनते। इससे सुधारक समाज को पाप, अन्याय, भ्रष्टाचार और अत्याचार जैसी बुराइयों से मुक्ति दिलाने में सफल हो सकता था। लोगों को सुधारक की उपेक्षा, निंदा अथवा उनके खिलाफ षड्यंत्र रचने के बजाय उनके अभियान में अपना पूरा सहयोग देना चाहिए। तभी समाज से ये बुराइयाँ दूर हो सकती हैं। यही इस पाठ का उद्देश्य है।