A PARAGRAPH ON BHARAT EK AZAAD HIND 10 SENTENCES
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हमारे देश का भद्रलोक अंग्रेजों का उत्तराधिकारी क्यों बना हुआ है? यह बगुलाभगत अपने स्वार्थ की माला जपना कब बंद करेगा? दिमागी गुलामी और नकल से भारत का छुटकारा कब होगा? इसकी पहल जनता को ही करनी होगी। गुलामी के खंडहरों को ढहाने का अभियान यदि जनता स्वयं शुरू करे तो नेतागण अपने आप पीछे चले आएंगे।देश अभी रेंग रहा है। जिस दिन सचमुच गुलामी हटेगी, वह दौड़ेगा।
जयराम रमेश ने कमाल कर दिया। चोगा उतार फेंका। क्या कोई मंत्री कभी ऐसा करता है? ऐसा तो नरेंद्र मोदी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने भी नहीं किया। कोई कांग्रेसी ऐसा कर देगा, यह सोचा भी नहीं जा सकता, क्योंकि वर्तमान कांग्रेस का गांधी से कोई लेना-देना नहीं है। गांधी गए तो वह कांग्रेस भी उनके साथ चली गई, जो गुलामी के साथ ही गुलामी के औपनिवेशिक प्रतीकों से भी लड़ाई कर रही थी।
गुलामी के खंडहरों को ढहाने का काम गांधी के बाद अकेले लोहिया ने किया। यह काम आर्य समाज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बेहतर तरीके से कर सकते थे, लेकिन उनके पास रणनीति और नेता दोनों का टोटा बना रहा। वे आज तक राष्ट्र निर्माण के इस मौलिक रहस्य को नहीं समझ पाए कि चाकू चलाए बिना शल्यचिकित्सा नहीं हो सकती। उस्तरा चलाए बिना दाढ़ी नहीं बनती। भारत के सभी राजनीतिक दल गालों पर सिर्फ साबुन घिसने को दाढ़ी बनाना समझे बैठे हैं।
इसीलिए आजाद भारत आज भी गुलाम है। अंग्रेजों के चले जाने से हमें सिर्फ संवैधानिक आजादी मिली है। क्या हम सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से आजाद हैं? संविधान कहता है कि ‘हां’ आजाद हैं, लेकिन वास्तविकता क्या कहती है? वास्तविकता यह है कि हम गुलाम हैं। कैसे हैं? उदाहरण लीजिए। सबसे पहले हमारी संसद को लें। संसद हमारी संप्रभुता की प्रतीक है। यह भारत की संसद है और इसका काम ब्रिटेन की भाषा में होता है।
क्या आज तक एक भी कानून राष्ट्रभाषा में बना है? सारे कानून परभाषा में बनते हैं। हमारे पुराने मालिक की भाषा में बनते हैं। किसी को शर्म भी नहीं आती। गनीमत है कि सांसदों को भारतीय भाषाओं में बोलने की इजाजत है। लेकिन वे भी भारतीय भाषाओं में इसीलिए बोलते हैं कि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती। अटलबिहारी वाजपेयी हिंदी में बोलते थे, लेकिन आडवाणी अंग्रेजी में क्यों बोलते हैं? जो हाल संसद का है, उससे भी बदतर हमारी अदालतों का है। भारत की अदालतें जादू-टोने की तरह चलती हैं। वकील क्या बहस कर रहा है और न्यायाधीश क्या फैसला दे रहा है, यह बेचारे मुवक्किल को सीधे पता ही नहीं चलता, क्योंकि गुलामी के दिनों का ढर्रा अभी भी जस का तस चला आ रहा है। वकील और न्यायाधीश काला कोट और चोगा वगैरह पहनकर अंग्रेजों की नकल ही नहीं करते, वे उन्हीं के पुराने घिसे-पिटे कानूनों के आधार पर न्याय-व्यवस्था भी चलाते आ रहे हैं।
इसीलिए लगभग तीन करोड़ मुकदमे अधर में लटके हुए हैं और कई मुकदमे तो 30-30 साल तक चलते रहते हैं। यदि भारत सचमुच आजाद हुआ होता तो हम उस भारतीय न्याय व्यवस्था को अपना आधार बनाते जो ग्रीक और रोमन व्यवस्था से भी अधिक परिपक्व है और उसमें नए आयाम जोड़कर हम उसे अत्यंत आधुनिक बना देते। यदि लोगों को न्याय उन्हीं की भाषा में मिले तो वह सही मिलेगा और जल्दी मिलेगा। क्या यह न्याय का मजाक नहीं कि भारत के उच्च न्यायालयों में भारतीय भाषाओं में जिरह की इजाजत ही नहीं है?
जो हाल संसद और अदालत का है, वही सरकार का भी है। किसी स्वतंत्र राष्ट्र में सरकार की हैसियत क्या होनी चाहिए? मालिक की या सेवक की? जैसे अंग्रेज शासन को अपने बाप की जागीर समझता था, वैसे ही हमारे नेता भी समझते हैं। उनकी अकड़, उनकी शान-शौकत, उनका भ्रष्टाचार देखने लायक होता है। वे अकेले दोषी नहीं हैं। इसके लिए वह जनता जिम्मेदार है, जो उन्हें बर्दाश्त करती है। वह अभी भी गुलामी में जी रही है।
वह अपने सेवकों को अब भी अपना मालिक समझे बैठी है। अपने नौकरों को निकालने के लिए उसे पांच साल तक इंतजार करना पड़ता है
भारत एक आज़ाद हिन्द :
1. हमारा भारत पहले 600 वर्ष तक मुगलों के अधीन रहा और बाद में 200 वर्ष तक अंग्रेजों के अधीन रहा I भारत छोडो आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर था Iलगभग उसी समय भारत की पूर्वी सीमा पर अंग्रजों से युध्ह करने के लिए हज़ारों सैनिक तैयार थे I
ये सभी सैनिक आज़ाद हिन्द सेना के सदस्य थे I नेताजी सुभाषचंद्र बोस उनका नेतृत्व कर रहे थे Iसुभाषचंद्र बोस राष्ट्रीय काग्रेस के अध्यक्ष के रूप में दो बार चुनकर आये थे Iउनका मानना था कि इस समय इंग्लैंड दुसरे विश्वयुद्ध में उलझा हुआ था Iइसका लाभ उठाते हुए भारत में प्रखर आन्दोलन किया जाना चाहिए और इसके लिए इंग्लैंड के शत्रुओं से भी सहयोग प्राप्त करना चाहिए परन्तु इस विषय पर उनके और राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच मतभेद उत्पन्न हुए I