a paragraph on nari shiksha 150 wrds
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नारी के विषयों में हमारे विद्वानों और विचारकों ने अलग अलग विचार प्रस्तुत किए हैं। गोस्वामी तुलसीदान ने नारी के अन्तर्गत बहुत प्रकार के दोषों की गणना की थी। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा कहा गया नारी का सद्चरित्र और उज्जवल चरित्र का उदघाटन नहीं करता है, अपितु इससे नारी के दुष्चरित्र पर ही प्रकाश पड़ता है। गोस्वामी तुलसीदास ने साफ साफ कहा था कि नारी में आठ अवगुण सदैव रहते हैं। उसमें साहस, चपलता, झूठापन, माया, भय, अविवेक, अपवित्रता और कठोरता खूब भरी होती है। चाहे कोई भी नारी क्यों न होये-
साहस, अनृत, चपलता, माया।
भय, अविवेक, असौच, अदाया।।
इसीलिए तुलसीदास ने नारी को पीटने के लिए कहा-
ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी।।
अगर तुलसीदास ने मनुस्मृति की उस शिक्षा पर ध्यान दिया होता, तो वे ऐसी कठारे वाणी का प्रयोग न करते। मनु महाराज संसार के सच्चे चिन्तक थे। इसलिए उन्होंने मानवता को सबसे पहले महत्व और स्थान दिया था। नारी को ऋद्धापूर्वक देखते हुए उसे देवी के रूप में मान्यता प्रदान की थी-
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः।
अर्थात् जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवगण निवास करते हैं। इसी से प्रभावित होकर कविवर जयशंकर प्रसाद ने कहा था-
नारी! तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पगतल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में।।
इतना होने पर भी नारी के प्रति अन्याय और शोषण कार्य चलता रहा, जिसे देख करके महान राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा-
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।।
नारी के प्रति उपेक्षा का क्या कारण रहा? इसके उत्तर में हम यह कह सकते हैं कि हमने अपने शास्त्र, अपनी संस्कृति सभ्यता आदि को एकदम भुल दिया और अन्धानुकरण से हमने काम लिया। हमने नारी के गुणों को पहचानने की कोशिश नहीं की। हमने यह समझा कि नारी एक परम मित्र और मंत्रणा की प्रतिमूर्ति है। वह पति के लिए दासी के समान सच्ची सेवा करने वाली है। माता के समान जीवन देने वाली अर्थात् रक्षा करने वाली है। रमण करने के लिए पत्नी है। धर्म के अनुकूल कार्य करने वाली है। पृथ्वी के समान क्षमाशील है।
आज के युग में नारी कितनी सुशील और शिष्ट क्यों न हो, अगर वह शिक्षित नहीं है, तो उसका व्यक्तित्व बड़ा नहीं हो सकता है, क्योंकि आज का युग प्राचीन काल को बहुत पीछे छोड़ चुका है। आज नारी पर्दा और लज्जा की दीवारों से बाहर आ चुकी है, वह पर्दा प्रथा से बहुत दूर निकल चुकी है। इसलिए आज इस शिक्षा युग में अगर नारी शिक्षित नहीं है, तो उसका इस युग से कोई तालमेल नहीं हो सकता है। ऐसा न होने से वह महत्वहीन समझी जायेंगी और इस तरह समाज से उपेक्षा का पात्र बन जाएगी। इसलिए आज नारी को शिक्षित करने की तीव्र आश्वयकता को समझकर इस पर ध्यान दिया जा रहा है।
नारी शिक्षा का महत्व निर्विवाद रूप से मान्य है। यह बिना किसी तर्क या विचार विमर्श के ही स्वीकार करने योग्य है, क्योंकि नारी शिक्षा के परिणामस्वरूप ही पुरूष के समान आदर और सम्मान का पात्र समझी जाती है। यह तर्क किया जा सकता है कि प्राचीनकाल में नारी शिक्षित नहीं होती थी। वह गृहस्थी के कार्यों में दक्ष होती हुई पतिपरायण और महान पतिव्रता होती थी। इसी योग्यता के फलस्वरूप वह समाज से प्रतिष्ठित होती हुई देवी के समान श्रद्धा और विश्वास के रूप में देखी जाती थी, लेकिन हमें यह सोचना विचारना चाहिए कि तब के समय में नारी शिक्षा की कोई आश्वयकता न थी। तब नारी नर की अनुगामिनी होती थी। यही उसकी योग्यता थी, जबकि आज की नारी की योग्यता शिक्षित होना है।
साहस, अनृत, चपलता, माया।
भय, अविवेक, असौच, अदाया।।
इसीलिए तुलसीदास ने नारी को पीटने के लिए कहा-
ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी।।
अगर तुलसीदास ने मनुस्मृति की उस शिक्षा पर ध्यान दिया होता, तो वे ऐसी कठारे वाणी का प्रयोग न करते। मनु महाराज संसार के सच्चे चिन्तक थे। इसलिए उन्होंने मानवता को सबसे पहले महत्व और स्थान दिया था। नारी को ऋद्धापूर्वक देखते हुए उसे देवी के रूप में मान्यता प्रदान की थी-
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः।
अर्थात् जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवगण निवास करते हैं। इसी से प्रभावित होकर कविवर जयशंकर प्रसाद ने कहा था-
नारी! तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पगतल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में।।
इतना होने पर भी नारी के प्रति अन्याय और शोषण कार्य चलता रहा, जिसे देख करके महान राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा-
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।।
नारी के प्रति उपेक्षा का क्या कारण रहा? इसके उत्तर में हम यह कह सकते हैं कि हमने अपने शास्त्र, अपनी संस्कृति सभ्यता आदि को एकदम भुल दिया और अन्धानुकरण से हमने काम लिया। हमने नारी के गुणों को पहचानने की कोशिश नहीं की। हमने यह समझा कि नारी एक परम मित्र और मंत्रणा की प्रतिमूर्ति है। वह पति के लिए दासी के समान सच्ची सेवा करने वाली है। माता के समान जीवन देने वाली अर्थात् रक्षा करने वाली है। रमण करने के लिए पत्नी है। धर्म के अनुकूल कार्य करने वाली है। पृथ्वी के समान क्षमाशील है।
आज के युग में नारी कितनी सुशील और शिष्ट क्यों न हो, अगर वह शिक्षित नहीं है, तो उसका व्यक्तित्व बड़ा नहीं हो सकता है, क्योंकि आज का युग प्राचीन काल को बहुत पीछे छोड़ चुका है। आज नारी पर्दा और लज्जा की दीवारों से बाहर आ चुकी है, वह पर्दा प्रथा से बहुत दूर निकल चुकी है। इसलिए आज इस शिक्षा युग में अगर नारी शिक्षित नहीं है, तो उसका इस युग से कोई तालमेल नहीं हो सकता है। ऐसा न होने से वह महत्वहीन समझी जायेंगी और इस तरह समाज से उपेक्षा का पात्र बन जाएगी। इसलिए आज नारी को शिक्षित करने की तीव्र आश्वयकता को समझकर इस पर ध्यान दिया जा रहा है।
नारी शिक्षा का महत्व निर्विवाद रूप से मान्य है। यह बिना किसी तर्क या विचार विमर्श के ही स्वीकार करने योग्य है, क्योंकि नारी शिक्षा के परिणामस्वरूप ही पुरूष के समान आदर और सम्मान का पात्र समझी जाती है। यह तर्क किया जा सकता है कि प्राचीनकाल में नारी शिक्षित नहीं होती थी। वह गृहस्थी के कार्यों में दक्ष होती हुई पतिपरायण और महान पतिव्रता होती थी। इसी योग्यता के फलस्वरूप वह समाज से प्रतिष्ठित होती हुई देवी के समान श्रद्धा और विश्वास के रूप में देखी जाती थी, लेकिन हमें यह सोचना विचारना चाहिए कि तब के समय में नारी शिक्षा की कोई आश्वयकता न थी। तब नारी नर की अनुगामिनी होती थी। यही उसकी योग्यता थी, जबकि आज की नारी की योग्यता शिक्षित होना है।
Mohitjain11:
it is more than 150 ..plz short it
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