a poem in hindi on topic "agriculture"
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वो डूबता दिन.. कैसा लाल होता था..
ठीक मेरी बाईं ओर..
दूर उस गाँव के पीठ पीछे जा छुपता था
सूरज.. तनिक सा झाँक रहता..
किसी शर्मीले बच्चे की तरह
दिन भर अपने खेतों पर बिता..
‘समय माई’ को बताशा-कपूर चढ़ा..
जब लौटते थे हम शहर की ओर
यही दृश्य होता हर बार..
ठीक मेरी बाईं ओर..
मुझे क्यों लगता..
जैसे कोई प्रेत-ग्राम हो
मायावी सा.. जन-शून्य..
घर ही घर दीखते.. आस पास..
कृषि-हीन.. बंजर ज़मीन..
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