a poem on किसी माहापुरुष के विचार
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ब्रह्माज्ञानी को स्वर्ग तृण है, शूर को जीवन तृण है, जिसने इंद्रियों को वश में किया उसको स्त्री तृण-तुल्य जान पड़ती है, निस्पृह को जगत तृण है-चाणक्य
सबसे उत्तम तीर्थ अपना मन है जो विशेष रूप से शुद्ध किया हुआ हो-स्वामी शंकराचार्य
कर्म, ज्ञान और भक्ति का संगम ही जीवन का तीर्थ राज है-दीनानाथ दिनेश
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Answer:bhai asi koi poem nhi h
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