Hindi, asked by ribikanaik719, 1 year ago

A prototype fornat of hindi essay of 500 words ongloblization

Answers

Answered by PurusharthSidhu
0

Answer:

and

Explanation:

भारत में भी वैश्वीकरण की प्रक्रिया धीरे-धीरे गति पकड़ रही है ।

भारत में वैश्वीकरण की प्रक्रिया 1991 में शुरू हुई जब नई आर्थिक नीति के अन्तर्गत अर्थव्यवस्था के खुलेपन के लिए निम्नलिखित क्षेत्रों का उदारीकरण किया गया

(a) नई व्यापार नीति के अन्तर्गत व्यापार का वैश्वीकरण

(b) नई औद्योगिक नीति के अन्तर्गत उद्योग व निवेश का वैश्वीकरण

(c) नई निवेश नीति के अन्तर्गत वित्त का वैश्वीकरण

सक्षेप में भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण हेतु निम्नलिखित उपाय किये गये हैं:

1. दुहरे कराधान को यथासम्भव समाप्त किया गया है ।

2. विदेशी ईक्विटी के अन्तर्प्रवाह को अत्यधिक सुगम तथा उदार बना दिया गया है । अब विदेशी निवेशकों को वे समस्त सुविधाएँ मिल रही हैं जो घरेलू निवेशकों को प्राप्त हैं ।

3. रुपये को चालू खाते पर पूर्ण परिवर्तनीय बना दिया गया है । अब धीरे-धीरे रुपया पूँजी खाते पर पूर्ण परिवर्तनीयता की ओर बढ़ रहा है ।

4. प्रारम्भिक दौर में आयातों को अत्यधिक उदार बनाया गया और अब तो आयातों पर से सभी प्रकार के मात्रात्मक प्रतिबन्ध उठा लिये गये हैं।

5. विश्व व्यापार संगठन के प्रति वचनबद्धताओं को पूरा करते हुए सीमा शुल्कों को 300 प्रतिशत, 400 प्रतिशत की उच्चतम दर से घटाते हुए 0-25 प्रतिशत के स्तर पर ले आया गया है ।

6. विदेशी प्रौद्योगिकी करार किये जाने, विदेशी कम्पनियों के ब्राण्ड नामों तथा ट्रेडमार्कों को बिना प्रौद्योगिकी हस्तान्तरण के ही प्रयुक्त किये जाने की छूट प्रदान कर दी गयी है ।

7. देशी एवं विदेशी कम्पनियों पर निगम कर अब लगभग बराबरी के स्तर पर है ।

भारत में वैश्वीकरण की प्रक्रिया गति पकड़ रही है ।

इसके कुछ प्रमुख संकेतक निम्नलिखित हैं:

(i) MNCs बड़ी संख्या में भारत में प्रवेश कर रही हैं ।

(ii) अमरीकी ऋण बाजार में भारतीय निगम सक्रिय हो रहे हैं ।

(iii) लगभग 2,000 भारतीय कम्पनियों ने ISO 9,000 प्रमाण-पत्र प्राप्त किये हैं जो कि उच्च गुणवत्ता की हैं।

(iv) पिछले कुछ वर्षों में व्यापार और निर्यात गहनता दोनों में भारी वृद्धि हुई है ।

(v) केवल तटकरों में ही कमी नहीं की गयी वरन् अर्थव्यवस्था को विदेशी प्रत्यक्ष विनियोग (FDI) तथा विदेशी प्रौद्योगिकी के लिए खोल दिया गया ।

(vi) 1994-95 के बजट में भुगतान सन्तुलन के चालू खाते में रुपये को पूर्व परिवर्तनीय कर दिया गया ।

अन्तर्राष्ट्रीय विदेश नीति से सम्बन्धित एक अमरीकी पत्रिका के अनुसार भूमण्डलीकरण (Globalization) के मामले में भारत अभी बहुत पीछे है ।

ए.टी. कीमी (A. T. Keamy) नाम की पत्रिका द्वारा जिन चुनिन्दा 50 विकसित एवं अल्पविकसित राष्ट्रों को भूमण्डलीकरण के स्तर की जाँच के लिए सर्वेक्षण में शामिल किया है, उनमें भारत का इस मामले में 49वाँ स्थान घोषित किया गया है । भारत से पीछे इस सूची में एकमात्र राष्ट्र ईरान बताया गया है । पत्रिका के सर्वेक्षण में भूमण्डलीकरण में अग्रणी स्थान सिंगापुर का बताया गया है ।

प्रतिकूल प्रभाव (Adverse Effects):

उपर्यक्त लाभों के होते हुए भी वैश्वीकरण का हमारी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है ।

जैसा कि निम्न तथ्यों से स्पष्ट हो जाए

(1) भारतीय उद्योग बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से मुकाबला करने के स्थान पर उनके सामने हथियार डाल रहे हैं और अपने उद्योगों को उन्हें बेच रहे हैं, जैसे – हल्के पेय थम्सअप, गोल्ड स्पॉट, लिम्का । भारतीय उद्योगपतियों ने Rs. 120 करोड़ में कोकाकोला को बेच दिया है और अब बिसलरी मिनरल वाटर को भी बेचा जा रहा है । यह प्रक्रिया देश के लिए हानिकारक है ।

ऐसा अनुमान है कि अब तक लगभग पाँच लाख लघु इकाइयाँ बन्द हो चुकी हैं जिससे 25 लाख व्यक्ति बेरोजगार हो गए हैं ।

बजाज ऑटो के अध्यक्ष प्रबन्ध निदेशक राहुल बजाज और आर.पी.जी. इण्टरप्राइजेज के उपाध्यक्ष संजीव गोयनका के अनुसार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से नवीनतम् प्रौद्योगिकी प्रबन्ध कौशल, निर्यात, वृद्धि आदि का जो आकलन किया गया था, वे खरे नहीं उतरे हैं बल्कि इससे कई क्षेत्रों में स्वदेशी उपकरण नष्ट हो गए हैं और उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में विदेशी कम्पनियों ने बिना ज्यादा निवेश के ही बाजा पर सम्पूर्ण कब्जा कर लिया है ।

ऐसा अनुमान है कि उपभोग क्षेत्र में भारतीय कम्पनियों का हिस्सा घटकर 30 प्रतिशत रह गया है । विदेशी कम्पनियों ने रंगीन टेलीविजन, फ्रिज, वाशिंग मशीन और इसी प्रकार के अन्य उत्पादों में अपना हिस्सा 70 फीसदी तक बढ़ा लिया है ।

(2) भारत में कुछ कम्पनियाँ ऐसी हैं जिनका प्रबन्ध नियन्त्रण उनके पास नहीं है, जैसे – कायनेटिक होण्डा (Kinetic Honda), एस.आर.एफ. (S.R.F.) व एल.एम.एल. (L.M.L.) । अब ये नवीनतम तकनीक देने के बहाने प्रबन्ध नियन्त्रण व पूँजी में हिस्सा ले सकते हैं । इस प्रकार कई बहुराष्ट्रीय निगम जो पहले भारत की नीति के कारण यहाँ से चले गए थे ।

जैसे – कोकाकोला (Coca Cola) व आई.बी.एम. (I.B.M.), अब पुनः भारत में आ गये हैं । यहाँ, पहले से भी कई निगम हैं जो कार्यशील हैं, जैसे – ए.बी.बी. (A.B.B.), प्रोक्टर एवं गेम्बर, लिप्टन, मदुरा कोट्स आदि । अब यह पुराने बहुराष्ट्रीय निगम भी पूँजी का प्रतिशत बढ़ाकर प्रबन्ध नियन्त्रण अपने अधिकार में ले सकते हैं ।

(3) अधिकांश नवीन स्वीकृतियाँ जो विदेशियों को दी गयी हैं, उसका 51 प्रतिशत निवेश महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल व दिल्ली राज्यों में उद्योग स्थापित करने के लिए है । इससे क्षेत्रीय असन्तुलन को बढ़ावा मिल रहा है जो देशहित में नहीं है ।

Similar questions