अंसुवन जल सींची-सींची,प्रेम - बेलि बोई ।
अब तो बेल फैल गई, आनंद - फल होई ।
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अंसुवन जल सींची-सींची,प्रेम - बेलि बोई ।
अब तो बेल फैल गई, आनंद - फल होई ।
इन पंक्तियों में मीरा अपने भाव को बता रही है कि किस प्रकार उन्होंने कृष्ण जी की भक्ति की है|
मैंने कृष्ण के प्रेम को उन्होंने ऐसे ही नहीं पाया है इसके लिए उन्होंने बहुत त्याग और दुखों को सहना पड़ा है| अब यह बेल चारों और ओर फ़ैल गई है| इसमें आनंद रूपी फल लग रहे है| अब कृष्ण की प्रेम रूपी बेल फल-फूल रही है| अब इससे आनंद रूपी फल की प्राप्त हो रहे है| वह इसे खोना नहीं चाहती है|
कुछ पाने के लिए प्रतीक्षा परनी पड़ती है| बीज बोने के एक दम बाद फल नहीं मिलते है हमें प्रतीक्षा करनी पड़ती है | पेड़ को पानी से सींचते-सींचते एक फल जरुर मिलता है|
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मीरा के लिए सदगुरु किसके समान है?
Answer:
इसका शिल्प सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए