a sentenct with an anunasik and a visarg in it
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Anunasik (अनुनासिक): इससे पहले लेख में हमने अनुस्वार के बारे में जाना था। इस लेख में हम अनुनासिक के बारे में जानेंगे कि अनुनासिक किसे कहते हैं? अनुनासिक का प्रयोग कहाँ होता है? अनुनासिक की जगह कब अनुस्वार का प्रयोग किया जाता है? अनुनासिक और अनुस्वार में क्या अंतर है?
अनुनासिक की परिभाषा
जिन स्वरों के उच्चारण में मुख के साथ-साथ नासिका की भी सहायता लेनी पड़ती है। अर्थात् जिन स्वरों का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से किया जाता है वे अनुनासिक कहलाते हैं।
इनका चिह्न चन्द्रबिन्दु (ँ) है।
Explanation:
अनुनासिक का प्रयोग
जिस प्रकार अनुनासिक की परिभाषा में बताया गया है कि जिन स्वरों का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से किया जाता है, वे अनुनासिक कहलाते हैं और इन्हीं स्वरों को लिखते समय इनके ऊपर अनुनासिक के चिह्न चन्द्रबिन्दु (ँ) का प्रयोग किया जाता है।
यह ध्वनि (अनुनासिक) वास्तव में स्वरों का गुण होती है। अ, आ, उ, ऊ, तथा ऋ स्वर वाले शब्दों में अनुनासिक लगता है।
जैसे -
कुआँ, चाँद, अँधेरा आदि।
अनुनासिक के स्थान पर अनुस्वार (बिंदु) का प्रयोग
अनुनासिक के प्रयोग में आपने देखा कि हमने बताया अनुनासिक स्वरों का गुण होता है और अ, आ, उ, ऊ, तथा ऋ स्वर वाले शब्दों में अनुनासिक लगता है। यहाँ आपके मन में संदेह उत्पन्न हो सकता है कि स्वरों में तो इ, ई, ए, ऐ, ओ और औ भी आते हैं तो अनुनासिक इन स्वरों वाले शब्दों में क्यों प्रयुक्त नहीं होता।
इसका एक कारण है और वह यह है कि जिन स्वरों में शिरोरेखा (शब्द के ऊपर खींची जाने वाली लाइन) के ऊपर मात्रा-चिह्न आते हैं, वहाँ अनुनासिक के लिए जगह की कमी के कारण अनुस्वार (बिंदु) लगाया जाता है।
इस नियम को उदाहरणों के माध्यम से समझेंगे -
नहीँ - नहीं
मैँ - मैं
गोँद - गोंद
इन सभी शब्दों में जैसा कि हम देख रहे हैं कि शिरोरेखा से ऊपर मात्रा-चिह्न लगे हुए हैं - जैसे ‘नहीं’में ई, ‘मैं’में ऐ तथा ‘गोंद’में ओ की मात्रा का चिह्न है।
इन शब्दों पर जब हम अनुनासिक (ँ) का चिह्न लगा रहे हैं, तो पाते हैं कि उसके लिए पर्याप्त स्थान नहीं है, इसीलिए इन सभी मात्राओं (इ, ई, ए, ऐ, ओ और औ) के साथ अनुनासिक (ँ) के स्थान पर अनुस्वार (ं) लगाया गया है।
यहाँ ध्यान रखने योग्य बात यह है कि अनुनासिक (ँ) के स्थान पर अनुस्वार (ं) का प्रयोग करने पर भी इन शब्दों के उच्चारण में किसी प्रकार का अंतर नहीं आता।
अनुस्वार और अनुनासिका में अंतर
1) अनुनासिका स्वर है जबकि अनुस्वार मूलत: व्यंजन। इनके प्रयोग के कारण कुछ शब्दों के अर्थ में अंतर आ जाता है।
जैसे -
हंस (एक जल पक्षी), हँस (हँसने की क्रिया)।
अंगना (सुंदर अंगों वाली स्त्री), अँगना (घर के बाहर खुला बरामदा)
स्वांग (स्व+अंग)(अपने अंग), स्वाँग (ढोंग)
2) अनुनासिका (चंद्रबिंदु) को परिवर्तित नहीं किया जा सकता, जबकि अनुस्वार को वर्ण में बदला जा सकता है।
3) अनुनासिका का प्रयोग केवल उन शब्दों में ही किया जा सकता है, जिनकी मात्राएँ शिरोरेखा से ऊपर न लगी हों।
जैसे अ, आ, उ, ऊ, ऋ
उदाहरण के रूप में - हँस, चाँद, पूँछ
4) शिरोरेखा से ऊपर लगी मात्राओं वाले शब्दों में अनुनासिका के स्थान पर अनुस्वार अर्थात बिंदु का प्रयोग ही होता है। जैसे - गोंद, कोंपल, जबकि अनुस्वार हर तरह की मात्राओं वाले शब्दों पर लगाया जा सकता है।