Hindi, asked by prathamsanap, 11 months ago

A short book review in hindi urgent. ​

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Answered by shajahanaansari
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Explanation:

नेहरू मिथक और सत्य

लेखक: पीयूष बबेले

संवाद प्रकाशन: आई-499, शास्त्री नगर, मेरठ-250 004, उत्तर प्रदेश

मूल्य: रु. 300

भारत और पाकिस्तान दोनों एक ही साथ आज़ाद हुए (आप विभाजित हुए या बनें भी पढ़ सकते हैं) पर आज किसी भी मायने में दोनों देशों की तुलना नहीं की जा सकती. जहां भारत मंगल ग्रह तक पहुंच चुका है, वहीं पाकिस्तान हथियारों की होड़ को छोड़ बाक़ी कई पैरामीटर्स पर हमसे कइयों साल पीछे चल रहा है. कभी आपने सोचा है ऐसा क्यों है? क्योंकि हमारे पास एक विज़नरी नेता था, जिसने आज़ादी के अगले डेढ़ दशक तक उस भारत की आधारशिला रखी, जिसकी मज़बूत बुनियाद पर आज हम न्यू इंडिया का जश्न मना रहे हैं. तमाम दुष्प्रचारों के बावजूद जो बहुलतावादी और धर्म निरपेक्ष भारत आपको दिखता है, वह नेहरू के विचारों की ही देन है. इसी नेता ने बहुसंख्यकवाद के दबाव में न आते हुए भारत को सच्चे मायने में धर्म निरपेक्ष बनाया. देश के अल्पसंख्यकों में बराबरी का एहसास जगाया. अपनी ज़िम्मेदारियां को भली प्रकार से निभाने, सही मायने में सबको साथ लेकर चलने और भविष्य का रोड मैप तैयार करने के लिए इस नेता को असली स्टेट्समैन कहा जाता है. दुखद यह है कि जन मानस में उस विज़नरी की तस्वीर को धुंधली करने की हर संभव कोशिश हो रही है. एक ऐसे समय में, जब सही मायने में नए भारत के विश्वकर्मा कहलाने वाली इस हस्ती की छवि को राजनैतिक साजिशों के तहत धूमिल करने की कोशिश की जा रही है, नेहरू: मिथक और सत्य जैसी किताब और ज़रूरी हो जाती है. यह किताब देश के पहले प्रधानमंत्री के बारे में हाल के दिनों में प्रचलित कई भ्रमों को तोड़ती है. गांधी, पटेल, सुभाषचंद्र बोस और भगत सिंह के साथ की जानेवाली कई बेवजह की तुलनाओं की ज़मीनी हक़ीक़त बयां करती है. उनके व्यक्तित्व को काले-सफ़ेद घेरों से आज़ाद करती है.

पंचवर्षीय योजना, मिश्रत अर्थव्यवस्था, बांध परियोजनाओं और अन्न आत्मनिर्भरता के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में लगे इस नेता का कांग्रेस के सुस्त हो चुके लोगों को बीच-बीच में डांटना, अपने नेताओं को सांप्रदायिकता के ख़तरे से आगाह करना यह बताता है कि वे भारत को किस ‌ओर ले जाना चाहते थे. भाषा के मुद्दे पर नेहरू के विचार बेहद व्यावहारिक लगेंगे. उन्होंने किसी एक भाषा को प्रोमोट करके दूसरी भाषा को दबाने की नीति का हमेशा विरोध किया. वे एक भाषा के पहले एक देश के सूत्र को मज़बूत कर लेना चाहते थे. कश्मीर के भारत के साथ जोड़े रखने में नेहरू की भूमिका को बिना किसी पूर्वाग्रह के समझना हो तो यह किताब पढ़ें. ग्राम स्वराज्य पर गांधी से असहमति को इतनी ख़ूबसूरती से जताते हैं कि गांधी ख़ुद उनकी कई बातों से सहमत हो जाते हैं. पुस्तक के छठें खंड में समकालीन व्यक्तित्वों के साथ नेहरू के संबंधों पर विस्तृत चर्चा की गई है. नेहरू बनाम पटेल जैसे मनगढंत विवादों को हवा देनेवालों को गांधी के इन दो चहेते शिष्यों की सहमति-असहमति के बारे में बहुत कुछ जानने मिलेगा.

इतिहास पढ़ने का समय न हो तो यह किताब ज़रूर पढ़ें. इसमें विभिन्न मुद्दों पर नेहरू के भाषणों के अंश लिए गए हैं, जो हमें इस विराट व्यक्तित्व को समझने में मदद करते हैं. नेहरू के भाषणों और समकालीन नेताओं के साथ उनके पत्र-व्यवहार का बारीक़ अध्ययन करने के बाद लिखी गई है यह किताब. बेशक, हर व्यक्ति के श्वेत और स्याह पहलू होते हैं. पर किसी को जज करने से पहले उसके बारे में ढंग से पढ़ लेना चाहिए. आधी-अधूरी और मनगढ़ंत बातों से समृद्ध व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों के लिए ज़रूरी किताब है, पर वे पढ़ेंगे नहीं क्योंकि शोध में उनका कोई इंट्रेस्ट है नहीं. ख़ैर, अगर आप व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के छात्र हैं तो इस पुस्तक के पन्नों से गुज़रने के बाद आपका सामना एक अलग ही नेहरू से होगा.

आज़ादी आंदोलन के दौरान जेल में समय बितानेवाला, भारतीय सभ्यता और संस्कृति की शानदार समझ रखनेवाला, लंबे समय से अज्ञान के सुरंग में भटक रहे देश को विज्ञान और आधुनिकता की दिशा दिखानेवाले नेता को किसी एक किताब भर से समझना नामुमक़िन है. पर लेखक ‌पीयूष बबेले की ने इस नेता के बारे में और जानने, और पढ़ने की रुचि तो दिखा ही दी है. पुस्तक में नेहरू की क़ामयाबियों के साथ-साथ ग़लतियों और विफलताओं पर भी चर्चा की गई है. जो इसे किसी एक ओर झुका हुआ या महिमामंडित करने की कोशिश की तरह नहीं दिखाती. लेखक की यह तटस्थता क़ाबिले तारीफ़ है. पुस्तक की सबसे अधिक खटकनेवाली बात यह है कि कई जगह एडिटिंग की कमी रह गई है. भाषणों के अंश और छोटे रखे जा सकते थे. कुछ जगहों पर उनका दोहराव खटकता है. बावजूद इसके काफ़ी रिसर्च करके लिखी गई यह किताब पिछले कुछ समय की सबसे ज़रूरी पुस्तक है. पहला मौक़ा मिलते ही पढ़ना शुरू करें.

यह किताब कोई एक दो दिन में पढ़कर ख़त्म करने जैसी नहीं है. इसे आप आहिस्ता आहिस्ता पढ़ें. एक दो चैप्टर पढ़ने के बाद चिंतन मनन करें. एक समय बाद वाक़ई वह विज़नरी आपसे संवाद करने लगेगा. वह दूर दृष्टा जिसने नींव रखी आधुनिक भारत की. आपको उस व्यक्ति से प्यार हो जाएगा, जिसने नए भारत की आधारशिला रखी. वह हक़दार भी है इस प्यार का.

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