a short essay on mazdoor kavita written by ramdhari sigh dinkar
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how many lines we have to write ????
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मज़दूर (रामधारी सिंह दिनकर)
मैं एक मजदूर हूं । मुझे देवताओं की बस्ती से कुछ लेना देना नहीं है । मैंने इस धरती पर स्वयं अनगिनत बार अनेकानेक स्वर्ग जैसी रचनाओं का निर्माण किया है । आसमान में जितने तारे होंगे उतने वर्षों (बरसों )से मेरे पूर्वजों ने इस धरती के रूप को संवारा है | धरती को सुंदर बनाने की चाह में हमारी कई पीढ़ियां तथा वंश व्यतीत हो गए ।
यद्यपि हम अपने अभावों को जीवन भर नहीं मिटा पाए है परंतु फिर भी हमने दूसरों के अभाव या कमियों को मिटाने का भरसक प्रयास किया है । युगों -युगों से इन झोपड़ियों में रहकर भी हम लोगों के रक्षार्थ उनके निवास बनाने तथा महल -दुमहले सजाने में लगे हुए हैं ।
इसी तरह मेरे कितने ही साथी स्वयं भूखे रहकर दूसरों के लिए अन्न उपजाने में अपना खून -पसीना एक कर रहे हैं । मुझे तो इतना भी समय नहीं मिलता कि मैं जीवन में अपनी खातिर कुछ सुख -सुविधा जुटाने के लिए प्रयास कर सकूं । जिन के खजाने भरने के लिए मेरी बाहें सतत परिश्रम करती रही क्या उनका मेरे प्रति कोई दायित्व नहीं है ?
अपने घर के अंधकार की चिंता न करके मैंने औरों के घर में बुझने वाले दीपक में प्रकाश की लौ जलाई है ।वस्तुत :मैं एक परिश्रम करने वाला श्रमिक (मजदूर)हूं ,मुझे देवताओं के निवास से कोई मतलब नहीं मैं इस धरती पर स्वर्ग का निर्माता स्वयं हूं ।