Hindi, asked by Harshilmotwani936, 9 months ago

A short paragraph on Kalidas ka jivan Parichay aur unki rachnaen

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Answered by anshnidhi2020
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छोटी-बड़ी कुल लगभग चालीस रचनाएँ हैं जिन्हें अलग-अलग विद्वानों ने कालिदास द्वारा रचित सिद्ध करने का प्रयास किया है।[12] इनमें से मात्र सात ही ऐसी हैं जो निर्विवाद रूप से कालिदासकृत मानि जाती हैं: तीन नाटक(रूपक): अभिज्ञान शाकुन्तलम्, विक्रमोर्वशीयम् और मालविकाग्निमित्रम्; दो महाकाव्य: रघुवंशम् और कुमारसंभवम्; और दो खण्डकाव्य: मेघदूतम् और ऋतुसंहार। इनमें भी ऋतुसंहार को प्रो॰ कीथ संदेह के साथ कालिदास की रचना स्वीकार करते हैं।[13] अभिव्यंजनावादभावाभिव्यन्जना शक्ति अपने सर्वोत्कृष्ट स्तर पर है और प्रकृति के मानवीकरण का अद्भुत रखंडकाव्ये से खंडकाव्य में दिखता है।[3]

कालिदास वैदर्भी रीति के कवि हैं और तदनुरूप वे अपनी अलंकार युक्त किन्तु सरल और मधुर भाषा के लिये विशेष रूप से जाने जाते हैं।[4]

उनके प्रकृति वर्णन अद्वितीय हैं और विशेष रूप से अपनी उपमाओं के लिये जाने जाते हैं।[5] साहित्य में औदार्य गुण के प्रति कालिदास का विशेष प्रेम है और उन्होंने अपने शृंगार रस प्रधान साहित्य में भी आदर्शवादी परंपरा और नैतिक मूल्यों का समुचित ध्यान रखा है।

कालिदास के परवर्ती कवि बाणभट्ट ने उनकी सूक्तियों की विशेष रूप से प्रशंसा की है।[6]
कथाओं और किंवदंतियों के अनुसार कालिदास शारीरिक रूप से बहुत सुंदर थे और विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में एक थे। कहा जाता है कि प्रारंभिक जीवन में कालिदास अनपढ़ और मूर्ख थे।

कालिदास का विवाह विद्योत्तमा नाम की राजकुमारी से हुआ। ऐसा कहा जाता है कि विद्योत्तमा ने प्रतिज्ञा की थी कि जो कोई उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा, वह उसी के साथ विवाह करेगी। जब विद्योत्तमा ने शास्त्रार्थ में सभी विद्वानों को हरा दिया तो हार को अपमान समझकर कुछ विद्वानों ने बदला लेने के लिए विद्योत्तमा का विवाह महामूर्ख व्यक्ति के साथ कराने का निश्चय किया। चलते चलते उन्हें एक वृक्ष दिखाई दिया जहां पर एक व्यक्ति जिस डाल पर बैठा था, उसी को काट रहा था। उन्होंने सोचा कि इससे बड़ा मूर्ख तो कोई मिलेगा ही नहीं। उन्होंने उसे राजकुमारी से विवाह का प्रलोभन देकर नीचे उतारा और कहा- "मौन धारण कर लो और जो हम कहेंगे बस वही करना"। उन लोगों ने स्वांग भेष बना कर विद्योत्तमा के सामने प्रस्तुत किया कि हमारे गुरु आप से शास्त्रार्थ करने के लिए आए है, परंतु अभी मौनव्रती हैं, इसलिए ये हाथों के संकेत से उत्तर देंगे। इनके संकेतों को समझ कर हम वाणी में आपको उसका उत्तर देंगे। शास्त्रार्थ प्रारंभ हुआ। विद्योत्तमा मौन शब्दावली में गूढ़ प्रश्न पूछती थी, जिसे कालिदास अपनी बुद्धि से मौन संकेतों से ही जवाब दे देते थे। प्रथम प्रश्न के रूप में विद्योत्तमा ने संकेत से एक उंगली दिखाई कि ब्रह्म एक है। परन्तु कालिदास ने समझा कि ये राजकुमारी मेरी एक आंख फोड़ना चाहती है। क्रोध में उन्होंने दो अंगुलियों का संकेत इस भाव से किया कि तू मेरी एक आंख फोड़ेगी तो मैं तेरी दोनों आंखें फोड़ दूंगा। लेकिन कपटियों ने उनके संकेत को कुछ इस तरह समझाया कि आप कह रही हैं कि ब्रह्म एक है लेकिन हमारे गुरु कहना चाह रहे हैं कि उस एक ब्रह्म को सिद्ध करने के लिए दूसरे (जगत्) की सहायता लेनी होती है। अकेला ब्रह्म स्वयं को सिद्ध नहीं कर सकता। राज कुमारी ने दूसरे प्रश्न के रूप में खुला हाथ दिखाया कि तत्व पांच है। तो कालिदास को लगा कि यह थप्पड़ मारने की धमकी दे रही है। उसके जवाब में कालिदास ने घूंसा दिखाया कि तू यदि मुझे गाल पर थप्पड़ मारेगी, मैं घूंसा मार कर तेरा चेहरा बिगाड़ दूंगा। कपटियों ने समझाया कि गुरु कहना चाह रहे हैं कि भले ही आप कह रही हो कि पांच तत्व अलग-अलग हैं पृथ्वी, जल, आकाश, वायु एवं अग्नि। परंतु यह तत्व प्रथक्-प्रथक् रूप में कोई विशिष्ट कार्य संपन्न नहीं कर सकते अपितु आपस में मिलकर एक होकर उत्तम मनुष्य शरीर का रूप ले लेते है जो कि ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है। इस प्रकार प्रश्नोत्तर से अंत में विद्योत्तमा अपनी हार स्वीकार कर लेती है। फिर शर्त के अनुसार कालिदास और विद्योत्तमा का विवाह होता है। विवाह के पश्चात कालिदास विद्योत्तमा को लेकर अपनी कुटिया में आ जाते हैं और प्रथम रात्रि को ही जब दोनों एक साथ होते हैं तो उसी समय ऊंट का स्वर सुनाई देता है। विद्योत्तमा संस्कृत में पूछती है "किमेतत्" परंतु कालिदास संस्कृत जानते नहीं थे, इसीलिए उनके मुंह से निकल गया "ऊट्र"। उस समय विद्योत्तमा को पता चल जाता है कि कालिदास अनपढ़ हैं। उसने कालिदास को धिक्कारा और यह कह कर घर से निकाल दिया कि सच्चे विद्वान् बने बिना घर वापिस नहीं आना। कालिदास ने सच्चे मन से काली देवी की आराधना की और उनके आशीर्वाद से वे ज्ञानी और धनवान बन गए। ज्ञान प्राप्ति के बाद जब वे घर लौटे तो उन्होंने दरवाजा खटखटा कर कहा - कपाटम् उद्घाट्य सुन्दरि! (दरवाजा खोलो, सुन्दरी)। विद्योत्तमा ने चकित होकर कहा -- अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः (कोई विद्वान लगता है)।

इस प्रकार, इस किम्वदन्ती के अनुसार, कालिदास ने विद्योत्तमा को अपना पथप्रदर्शक गुरु माना और उसके इस वाक्य को उन्होंने अपने काव्यों में भी जगह दी। कुमारसंभवम् का प्रारंभ होता है- अस्त्युत्तरस्याम् दिशि… से, मेघदूतम् का पहला शब्द है- कश्चित्कांता… और रघुवंशम् की शुरुआत होती है- वागार्थविव… से।


छोटी-बड़ी कुल लगभग चालीस रचनाएँ हैं जिन्हें अलग-अलग विद्वानों ने कालिदास द्वारा रचित सिद्ध करने का प्रयास किया है।[12] इनमें से मात्र सात ही ऐसी हैं जो निर्विवाद रूप से कालिदासकृत मानि जाती हैं: तीन नाटक(रूपक): अभिज्ञान शाकुन्तलम्, विक्रमोर्वशीयम् और मालविकाग्निमित्रम्; दो महाकाव्य: रघुवंशम् और कुमारसंभवम्; और दो खण्डकाव्य: मेघदूतम् और ऋतुसंहार। इनमें भी ऋतुसंहार को प्रो॰ कीथ संदेह के साथ कालिदास की रचना स्वीकार करते हैं।[13]
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