Hindi, asked by ananyasri1204, 1 year ago

A SHORT PARAGRAPH ON PAROPKAR IN HINDI SCRIPT.

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Answered by PK78000
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राजा भर्तृहरि ने नीतिशतक में लिखा है, 'सूर्य कमल को स्वयं खिलाता है। चंद्रमा कुमुदिनी को स्वयं विकसित करता है। बादल स्वयं, बिना किसी के कहे, जल देता है। महान आत्माएं यानी श्रेष्ठ जन अपने आप दूसरों की भलाई करते हैं।' इसका आशय यह है कि प्रकृति का हर तत्व दूसरों की भलाई बिना किसी के कहे करता है। यही वजह है कि हमें भौतिक जगत का प्रत्येक पदार्थ मनुष्य के उपकार में लीन दिखता है। सूर्य, चंद्रमा, तारे, आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, औषधियां, वनस्पतियां- फल, फूल और पालतू पशु दिन-रात मनुष्य के कल्याण में लगे हुए हैं। ये सभी दूसरों के उपकार के लिए कुछ न कुछ देते हैं। यदि ये परोपकार में लगे हैं तो एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य के प्रति उपकार क्यों नहीं करना चाहिए? प्रकृति का यह एक महान संदेश है। जैसे सूर्य अपना प्रकाश स्वयं ही सब को समान रूप से देता है, हमारे जीवन का उद्देश्य भी ऐसा ही होना है। जैसे बादल हमें जल देते हैं और किसी से यह नहीं पूछते कि 'तुम सुपात्र हो या नहीं', वैसे ही हमारा जीवन भी दूसरों को देने के लिए है।
Answered by Twinkle9454
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परोपकार की प्रवृत्ति को अपना कर हम एक प्रकार से ईश्वर की रची सृष्टि की सेवा करते है। ऐसा करने से हमें जो आत्मसंतोष और तृप्ति मिलती है, उससे हमारी सारी संपत्तियों की सार्थकता साबित होती है। परोपकार की एक आध्यात्मिक उपयोगिता भी है। वह यह है कि हम दूसरों की आत्मा को सुख पहुंचा कर अपनी ही आत्मा को सुखी बनाते हैं। जब हम परोपकार को अपना स्वभाव बना लेते है तो उसका दोहरा लाभ होता है। परोपकार की नीति के तहत किसी की सहायता करके और दूसरों के प्रति सहानुभूति दर्शा कर जिन दीनहीनों का कष्ट दूर किया जाएगा, उनमें सद्भावपूर्ण मानवीय चेतना जाग्रत होगी। ऐसा होने से वे भी दूसरों की सेवा और सहयोग करने का महत्व समझने लगते हैं।
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