a short poem in Hindi please
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चंचल पाग दीपशिखा के घर
गृह , मग , वन में आया वसंत !
सुलगा फाल्गुन का सूनापन
सुंदर सिखाओ में अनंत !
सौरभ की शीतल ज्वाला से
फायदा उर - उर में मधुर दाह
आया बसंत , भर पृथ्वी पर
स्वर्गिक सुंदरता का प्रवाह !
पल्लव - पल्लव में नवल रुधिर
पत्रों में मांसल रंग खिला ,
आया नीली पीली लौ से
पुष्पों के चित्रित दीप जला !
अंधेरों की लाली से चुपके
कोमल गुलाब के गाल लजा ,
आया , पंखुड़ियों को काले -
पीले दमोह से सहज सजा !
कली के पलकों में मिलन स्वप्न ,
अली के अंतर में प्रणय गान
लेकर आया, प्रेमी वसंत
आकुल जड़ चेतन स्नेह प्राण !
काली कोकिल ! सुलगा उर में
स्वरमई वेदना का अंगार ,
आया वसंत , घोषित दिगंत
करती , भर पावक की पुकार !
आ , प्रिय ! निखिल यह रूप रंग
रिलमिल अंतर में स्वर अनंत
रचते सजीव जो प्रणय मूर्ति
उनकी छाया , आया वसंत !
- सुमित्रानंदन पंत
Explanation:
यह कविता कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा लिखी गई , एक बहुत ही अच्छी कविता है । सुमित्रानंदनसुमित्रानंदन पंत का जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसनी ग्राम में सन उन्नीस सौ १९०० में हुआ था । छायावादी काव्यधारा की आधार भूमि के निर्माताओं में उनका नाम निराला , प्रसाद और महादेवी के साथ लिया जाता है । सुमित्रानंदन पंत जी को प्रकृति का बेजोड़ कवि कहा जाता है । अपनी कविताओं में उन्होंने प्रकृति और मनुष्य के अंतरण संबंधों का जीवंत बना दिया है ।
प्रस्तुत कविता में कवि ने वसंत के आगमन एवं उसके आगमन से प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों को अत्यंत सहजता से व्यक्त किया है ।