A short speech on chayawadi yug in hindi
Answers
हिन्दी साहित्य में द्विवेदी युग की प्रतिक्रिया स्वरूप जो काव्य धारा प्रवाहित हुई, उसे छायावादी काव्य के नाम से पुकारा गया। छायावाद के सर्वप्रथम रचनाकार मुकुटधर पाण्डेय के अनुसार- ‘वह कविता जो कविता न होकर उसकी छाया है, छायावादी कविता कहलाई। आगे चलकर छायावादी काव्य धारा के प्रतिनिधि रचनाकारों ने इसका समर्थन किया। इसके विशिष्ट गुणों के अनुसार इसका व्याखान किया। छायावाद के सम्बन्ध में कविवर जयशंकर प्रसाद ने कहा-
‘इसमें मोती के भीतर जैसी तरलता और आव होती है।’
महादेवी वर्मा ने इसमें सूक्ष्म और तरल अनुभूतियों की अभिव्यक्ति पाकर इसे छायावाद कहना उचित समझा। इस प्रकार से छायावाद की एक नहीं अनेक विशेषताओं को छायावादी रचनाकारों सहित साहित्यालोचकों ने देखा और व्यक्त किया। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी ने इसके विषय में अपना दृष्टिकोण व्यक्त करते हुए कहा-
‘छायावाद एक शैली विशेष है, जो लाक्षणिक प्रयोगों, अप्रस्तुत विधानों और अमूर्त्त उपमानों को लेकर चलती है।’ डा. नगेन्द्र ने छायावाद के विषय में अपना प्रतिपादित करते हुए कहा कि – ‘स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह छायावाद है।’
उपर्युक्त मंतव्यों के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि तत्कालीन हमारे समाज पर पश्चिमी अर्थव्यवस्था, औद्योगिकीकरण, संस्कृति स्वच्छन्दतावादी काव्य, मानवतावाद आदि के प्रभाव के साथ गाँधी के नेतृत्व सहित अन्य समाज और राष्ट्र के नायक के बार बार मात खाते हुए आन्दोलनों के प्रतिक्रियास्वरूप अद्वैतवाद का बोध होने लगा था। द्विवेदी युग की उपदेशमयी, इतिवृत्तात्मकता, नैतिकता और स्थूल वस्तुगत चित्रण के प्रतिक्रिया स्वरूप ही छायावाद का उदय हुआ था।
छायावादी काव्य की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. वैयक्तिकता- छायावादी काव्य में निजी भावनाओं का विषद चित्रण हुआ है, जैसे-
दिए हैं मैंने जगत को फूल फल,
किया है अपनी प्रभा के चकित चल
पर अनष्वर था सकल पल्लवित पल,
ठाट जीवन का वही – जो ढह गया है – सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
2. सौन्दर्य और प्रेम का चित्रण- छायावादी काव्य में सौन्दर्य और प्रेम का चित्ताकर्षक चित्रण है। भावुक और संवेदनशील होने के कारण इन कवियों ने प्रकृति और नारी के कोमल सौन्दर्य पक्ष को तीव्र प्रेमानुभूतियों के द्वारा प्रस्तुत किया है। कविवर प्रसाद जी ने इस प्रकार का चित्रण करते हुए अपने चर्चित काव्यकृति, आँसू में लिखा है-
चंचला स्नान कर आवे,
चन्द्रिका, पर्व में जैसी।
उस पावन तन की शोभा,
आलोक मधुर थी ऐसी।।