a small moral story with conclusion in Hindi pls
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जीतने का मतलब
एक गांव में मोहन नाम का लड़का रहता था| उसके पिताजी एक मामूली मजदूर थे| एक दिन मोहन के पिताजी उसको अपने साथ शहर ले गए| उनको एक मैदान साफ करने का काम मिला था जिसमें एक दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन होना था|
मोहन मैदान देख कर बहुत खुश हुआ| उस दिन उसे भी दौड़ने का शौक चढ़ गया| जब यह दोनों गांव लौटे तो मोहन ने अपने पिता से जिद की कि हमारे गांव में भी दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन होना चाहिए| मोहन के पिता ने गांव के प्रधान के सामने यह सुझाव रखा|
कुछ ही दिनों में प्रतियोगिता की तैयारी शुरू हो गई और आसपास के सभी गांव के बहुत सारे बच्चे दौड़ में हिस्सा लेने के लिए आ गए|
मोहन के दादा जी सब शांति से देख रहे थे| हालांकि प्रतियोगिता बहुत कठिन थी| लेकिन मोहन ने ठान रखा था कि उसे जीतना ही है|सीटी बजते ही सारे प्रतिभागी रेस लाइन की तरफ दौड़ने लगे|
कड़क धूप और पथरीले रास्ते को पार करते हुए मोहन ने रेस जीत ली| पूरा मैदान तालियों से गूंज उठा| मोहन की एक के बाद एक जीत का सिलसिला शुरू हो गया|
मोहन के दादा जी मन ही मन यह देख कर बहुत दुखी होते थे| एक दिन दादाजी ने मोहन के लिए एक खास दौड़ का आयोजन किया| दौड़ के नाम पर मोहन खुशी-खुशी मैदान में आया|
दादाजी ने उससे कहा बेटा, हर रेस में जीतने के अलग-अलग तरीके होते हैं| सोच समझकर दौड़ना|मोहन को कुछ समझ नहीं आया|
आसपास के सभी गांव के लोग दौड़ प्रतियोगिता देखने आए थे|मोहन ने देखा कि इस प्रतियोगिता में उसके अलावा केवल दो ही प्रतिभागी थे| हमेशा की तरह सिटी बजते ही मोहन रेस लाइन की तरफ दौड़ा| वह लाइन तक पहुंचने ही वाला था कि उसने देखा कि बाकी के दोनों प्रतिभागियों ने अभी तक दौड़ना भी शुरू नहीं किया है|
मोहन ने देखा कि एक प्रतिभागी लंगड़ा है और दूसरा प्रतिभागी अंधा| मैदान में चुप्पी छाई हुई थी| मोहन अपनी जगह पर वापस गया और दोनों प्रतिभागियों के हाथ पकड़कर, धीरे-धीरे उन्हें रेस लाइन तक साथ में लेकर आया| तीनों प्रतिभागियों ने एक साथ रेस लाइन को पार किया| यह देखकर पूरा मैदान तालियों की गूंज से भर उठा|
मोहन के दादा जी बोले, आज मुझे यकीन हो गया है कि तुम असली विजेता हो|
सीख :-
जीवन की हर रेस में जीतना ही जरूरी नहीं होता है
Explanation:
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°° चिड़िया की परेशानी °°
एक चिड़िया थी वह बहुत उच उड़ती , इधर उधर चहचहाती रहती | कभी इस टहनी पर कभी उस टहनी पर फुदकती रहती |पर उस चिड़िया की एक आदत थी वह जो भी दिन में उसके साथ होता अच्छा या बुरा उतने पत्थर अपने पास पोटली में रख लेती और अकसर उन पत्थरो को पोटली से निकाल कर देखती अच्छे पत्थरो को देखकर बीते दिनों में हुई अच्छी बातो को याद करके खुश होती | और खराब पत्थरो को देखकर दुखी होती |ऐसा रोज़ करती | रोज़ पत्थर इकठा करने से उसकी पोटली दिन प्रतिदिन भारी होती जा रही थी | थोड़े दिन बाद उसे भरी पोटली के साथ उड़ने में दिक्कत होने लगी | पर उसे समझ नहीं आ रहा था की वह उठ क्यों नहीं पा रही |
एक चिड़िया थी वह बहुत उच उड़ती , इधर उधर चहचहाती रहती | कभी इस टहनी पर कभी उस टहनी पर फुदकती रहती |पर उस चिड़िया की एक आदत थी वह जो भी दिन में उसके साथ होता अच्छा या बुरा उतने पत्थर अपने पास पोटली में रख लेती और अकसर उन पत्थरो को पोटली से निकाल कर देखती अच्छे पत्थरो को देखकर बीते दिनों में हुई अच्छी बातो को याद करके खुश होती | और खराब पत्थरो को देखकर दुखी होती |ऐसा रोज़ करती | रोज़ पत्थर इकठा करने से उसकी पोटली दिन प्रतिदिन भारी होती जा रही थी | थोड़े दिन बाद उसे भरी पोटली के साथ उड़ने में दिक्कत होने लगी | पर उसे समझ नहीं आ रहा था की वह उठ क्यों नहीं पा रही |कुछ समय और बीता, पोटली और भारी होती जा रही थी | अब तो उसका जमीन पर चलना भी मुश्किल हो रहा था | और एक दिन ऐसा आया की वह खाने पीने का इंतज़ाम भी नहीं कर पाती अपने लिए और अपने पत्थरो के बोझ तले मर गयी .