a story in 100-120 words in hindi related to dukh ka adhikar chapter class -9
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Answers
Explanation:
एक बार एक धनी पुरुष ने एक मंदिर बनवाया | मंदिर में भगवान की पूजा करने के लिए एक पुजारी | मंदिर के खर्च के लिए बहुत सी भूमि, खेत और बगीचे मंदिर के नाम लगाएं | उन्होंने ऐसा प्रबंध किया था कि जो मंदिरों में भूखे, दीन दुखी या साधु-संतों आवे, वे वहां दो-चार दिन ठहर सके और उनको भोजन के लिए भगवान का प्रसाद मंदिर से मिल जाया करे | अब उन्हें एक ऐसे मनुष्य की आवश्यकता हुई जो मंदिर की संपत्ति का प्रबंध करें और मंदिर के सब कामों को ठीक-ठीक चलाता रहे !
बहुत से लोग उस धनी पुरुष के पास आए | वे लोग जानते थे कि यदि मंदिर की व्यवस्था का काम मिल जाए तो वेतन अच्छा मिलेगा | लेकिन उस धनी पुरुष ने सबको लौटा दिया | वह सब से कहता था – ‘ मुझे एक भला आदमी चाहिए, मैं उसको अपने आप छाट लूंगा |’
बहुत से लोग मन ही मन में उस धनी पुरुष को गालियां देते थे | बहुत लोग उसे मूर्ख या पागल बतलाते थे | लेकिन वह धनी पुरुष किसी की बात पर ध्यान नहीं देता था | जब मंदिर के पट खुलते थे और लोग भगवान के दर्शन के लिए आने लगते थे तब वह धनी पुरुष अपने मकान की छत पर बैठकर मंदिर में आने वाले लोगों को चुपचाप देखता रहता था
Answer:
लेखक के अनुसार मनुष्यों का पहनावा ही समाज में मनुष्य का अधिकार और उसका दर्ज़ा निश्चित करता है। परन्तु लेखक कहता है कि समाज में कभी ऐसी भी परिस्थिति आ जाती है कि हम समाज के ऊँचे वर्गों के लोग छोटे वर्गों की भावनाओं को समझना चाहते हैं परन्तु उस समय समाज में उन ऊँचे वर्ग के लोगों का पहनावा ही उनकी इस भावना में बाधा बन जाती है।
लेखक अपने द्वारा अनुभव किये गए एक दृश्य का वर्णन करता हुआ कहता है कि एक दिन लेखक ने बाज़ार में, फुटपाथ पर कुछ खरबूजों को टोकरी में और कुछ को ज़मीन पर रखे हुए देखा। खरबूजों के नज़दीक ही एक ढलती उम्र की औरत बैठी रो रही थी।
लेखक कहता है कि खरबूज़े तो बेचने के लिए ही रखे गए थे, परन्तु उन्हें खरीदने के लिए कोई कैसे आगे बढ़ता? क्योंकि खरबूजों को बेचने वाली औरत ने तो कपड़े में अपना मुँह छिपाया हुआ था और उसने अपने सिर को घुटनों पर रखा हुआ था और वह बुरी तरह से बिलख - बिलख कर रो रही थी। लेखक कहता है कि उस औरत का रोना देखकर लेखक के मन में दुःख की अनुभूति हो रही थी, परन्तु उसके रोने का कारण जानने का उपाय लेखक को समझ नहीं आ रहा था क्योंकि फुटपाथ पर उस औरत के नज़दीक बैठ सकने में लेखक का पहनावा लेखक के लिए समस्या खड़ी कर रहा था क्योंकि लेखक ऊँचे वर्ग का था और वह औरत छोटे वर्ग की थी।
लेखक कहता है कि उस औरत को इस अवस्था में देख कर एक आदमी ने नफरत से एक तरफ़ थूकते हुए कहा कि देखो क्या ज़माना है! जवान लड़के को मरे हुए अभी पूरा दिन नहीं बीता और यह बेशर्म दुकान लगा के बैठी है। वहीं खड़े दूसरे साहब अपनी दाढ़ी खुजाते हुए कह रहे थे कि अरे, जैसा इरादा होता है अल्ला भी वैसा ही लाभ देता है।
लेखक कहता है कि सामने के फुटपाथ पर खड़े एक आदमी ने माचिस की तीली से कान खुजाते हुए कहा अरे, इन छोटे वर्ग के लोगों का क्या है? इनके लिए सिर्फ रोटी ही सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है।
इनके लिए बेटा-बेटी, पति-पत्नी, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है। इन छोटे लोगों के लिए कोई भी रिश्ता रोटी नहीं है। जब लेखक को उस औरत के बारे में जानने की इच्छा हुई तो लेखक ने वहाँ पास-पड़ोस की दुकानों से उस औरत के बारे में पूछा और पूछने पर पता लगा कि उसका तेईस साल का एक जवान लड़का था।
घर में उस औरत की बहू और पोता-पोती हैं। उस औरत का लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा भर ज़मीन में सब्जियाँ उगाने का काम करके परिवार का पालन पोषण करता था। लड़का परसों सुबह अँधेरे में ही बेलों में से पके खरबूजे चुन रहा था। खरबूजे चुनते हुए उसका पैर दो खेतों की गीली सीमा पर आराम करते हुए एक साँप पर पड़ गया।
साँप ने लड़के को डस लिया।लेखक कहता है कि जब उस औरत के लड़के को साँप ने डँसा तो उस लड़के की यह बुढ़िया माँ पागलों की तरह भाग कर झाड़-फूँक करने वाले को बुला लाई। झाड़ना-फूँकना हुआ। नागदेव की पूजा भी हुई।
लेखक कहता है कि पूजा के लिए दान-दक्षिणा तो चाहिए ही होती है। उस औरत के घर में जो कुछ आटा और अनाज था वह उसने दान-दक्षिणा में दे दिया। पर भगवाना जो एक बार चुप हुआ तो फिर न बोला। लेखक कहता है कि ज़िंदा आदमी नंगा भी रह सकता है, परंतु मुर्दे को नंगा कैसे विदा किया जा सकता है? उसके लिए तो बजाज की दुकान से नया कपड़ा लाना ही होगा, चाहे उसके लिए उस लड़के की माँ के हाथों के ज़ेवर ही क्यों न बिक जाएँ।