Hindi, asked by ScarlettAngel, 1 year ago

a STORY in HINDI on Dur Ke Dol Suhavne...................................(if u have written this in ur copy ,its ok if u send the picture

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Answered by mannat7
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दूर के ढोल सुहावने हैं

सभी लोग जो एक देश में रहते हैं , दूसरे देश के लोगों को देखना चाहते हैं । वे दूसरे देश में रहना चाहते हैं । वे सब सोचते हैं कि वह दूसरा देश और सुंदर होगा । वहाँ और पैसा मिलेगा । वहाँ ज़्यादा खुशी होगी । लोग सोचते हैं कि दूसरे देश में सब आसान है और वहाँ कुछ मुश्किलें ही नहीं हैं । वे सोचते हैं कि दूसरे देश में सब लोग हर पल खुश रहते हैं । सोचते हैं कि वहाँ जाकर उनकी ज़िंदगी अच्छी हो जाएगी । लोग जो कालेज या फिर काम से दूसरे देश में जाते हैं, वे सोचते हैं कि वे दूसरे देश में अपने परिवार और स्कूल के नियमों से दूर रहेंगे । यह कहानी एक ऐसी लड़की के बारे में है जो यह सब सोचती है और जब वहाँ जाती है तो उसे पता चलता है कि वास्तविकता अलग ही है।मीरा की कहानी नई दिल्ली के एक बड़े मकान में शुरु होती है । मीरा बस बारह साल की थी जब उसने अमेरिका और यूरोप के किसी कालेज में जाने की सोची । मगर उसने कभी नहीं सोचा था कि वह बाहर के कालेज में जा पाएगी । उसके पिता गवर्मेण्ट दफ्तर में काम करते थे और उसकी माता घर में रहती थीं । मीरा और उसका छोटा भाई राघव का ख्याल उसकी माँ ही रखती थी । घर बड़ा तो था, मगर पैसे इतने नहीं थे । मीरा और राघव दोनों गवर्मेण्ट स्कूल में जाते थे और बड़े होकर शायद अपने माता-पिता की तरह ही बनते । राघव गवर्मेण्ट दफ्तर में जाता और मीरा किसी अच्छे परिवारे के लड़के से शादी करती और अपने घर-परिववार को संभालती ।एक दिन, उसके पिता दफ्तर से जल्दी वापिस आए । वे बहुत खुश थे और दो-तीन डिब्बे मिठाई के भी लेकर आए थे घर के लिए । जब मीरा की माँ ने पूछा कि क्या हुआ, वे इतने खुश क्यों हैं ? वे बोले कि उन्हें बहुत बड़ी प्रमोशन मिली थी और इस नए काम से उन्हें बहुत पैसे मिलेंगे ,साथ ही बड़ा-सा घर मिलेगा । पूरा परिवार बहुत खुश हो गया । मगर मीरा खुश नहीं थी । जितने भी पैसे उसके पिता को मिलते, उतना ही उसका दहेज भी बढ़ता । जब दहेज अधिक होगा, तो बहुत-से लोग उससे शादी करना चाएंगे । ऐसे दु:ख भरे सपनों के साथ मीरा ने रात गुज़ारी । पाँच-छ: साल बीत गए । मीरा ने स्कूल खत्म कर लिया और घर में रहती थी । हर दिन उसे किसी न किसी काम पर डाँट पड़ती थी । उसकी माँ रोज उस पर चिल्लाती थीं कि मीरा ने खाना बिगाड़ दिया या कपड़े साफ नहीं धोए थे । उनके पिता राम यह सब देखकर दु:खी हो गए क्योंकि मीरा बहुत बुद्धिमान थी और वह बाहर के बड़े कालेज में जा पाती तो उसकी ज़िंदगी अच्छी हो जाती । अन्त में उन्होंने फैसला कर लिया कि वह मीरा को बाहर के कालेज में भेजेंगे , राघव को नहीं । उनकी पत्नी बहुत गुस्सा हो गईं, पर राम ने माने । उसने मीरा को बाहर के कालेज में भेज दिया । मीरा बहुत खुश हुई और खुशी से वहाँ गई । वह अपने घर में बहुत खुश नहीं थी और सोचती थी कि बाहर अलग ही आज़ाद ज़िंदगी होगी, जहाँ वह हर पल खुश रहेगी ।
परन्तु मीरा वहाँ हर पल खुश नहीं रहती थीं । वहाँ कालेज में वह किसी को नहीं जानती थी और बहुत कम लोग उससे बात करते थे क्योंकि उसकी अंग्रेजी अच्छी नहीं थी । वह दिखने में भी खास नहीं थी । कालेज में बहुत काम भी था । उसे काम करना तो आता था मगर समस्या थी कि उसे सब काम अंग्रेजी में करना होता था । वह सब काम दो-तीन दिन में देना होता था, स्कूल की तरह नहीं था । यहाँ मीरा की अध्यापिका हफ्ते में एक बार आती थी, सब किताबों पर बहुत अच्छा लिखकर चली जाती थी । इन सब मुश्किलों के साथ मीरा को वहाँ खाना भी अच्छा नहीं लगा । तभी उसको समझ में आया- "दूर के ढोल सुहावने होते हैं ।"

ScarlettAngel: tq dear....
mannat7: Wlcm sis
Answered by varanasiashish
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Answer:

Dur ke Dol Suhavne

सभी लोग जो एक देश में रहते हैं , दूसरे देश के लोगों को देखना चाहते हैं । वे दूसरे देश में रहना चाहते हैं । वे सब सोचते हैं कि वह दूसरा देश और सुंदर होगा । वहाँ और पैसा मिलेगा । वहाँ ज़्यादा खुशी होगी । लोग सोचते हैं कि दूसरे देश में सब आसान है और वहाँ कुछ मुश्किलें ही नहीं हैं । वे सोचते हैं कि दूसरे देश में सब लोग हर पल खुश रहते हैं । सोचते हैं कि वहाँ जाकर उनकी ज़िंदगी अच्छी हो जाएगी । लोग जो कालेज या फिर काम से दूसरे देश में जाते हैं, वे सोचते हैं कि वे दूसरे देश में अपने परिवार और स्कूल के नियमों से दूर रहेंगे । यह कहानी एक ऐसी लड़की के बारे में है जो यह सब सोचती है और जब वहाँ जाती है तो उसे पता चलता है कि वास्तविकता अलग ही है।

मीरा की कहानी नई दिल्ली के एक बड़े मकान में शुरु होती है । मीरा बस बारह साल की थी जब उसने अमेरिका और यूरोप के किसी कालेज में जाने की सोची । मगर उसने कभी नहीं सोचा था कि वह बाहर के कालेज में जा पाएगी । उसके पिता गवर्मेण्ट दफ्तर में काम करते थे और उसकी माता घर में रहती थीं । मीरा और उसका छोटा भाई राघव का ख्याल उसकी माँ ही रखती थी । घर बड़ा तो था, मगर पैसे इतने नहीं थे । मीरा और राघव दोनों गवर्मेण्ट स्कूल में जाते थे और बड़े होकर शायद अपने माता-पिता की तरह ही बनते । राघव गवर्मेण्ट दफ्तर में जाता और मीरा किसी अच्छे परिवारे के लड़के से शादी करती और अपने घर-परिववार को संभालती ।

एक दिन, उसके पिता दफ्तर से जल्दी वापिस आए । वे बहुत खुश थे और दो-तीन डिब्बे मिठाई के भी लेकर आए थे घर के लिए । जब मीरा की माँ ने पूछा कि क्या हुआ, वे इतने खुश क्यों हैं ? वे बोले कि उन्हें बहुत बड़ी प्रमोशन मिली थी और इस नए काम से उन्हें बहुत पैसे मिलेंगे ,साथ ही बड़ा-सा घर मिलेगा । पूरा परिवार बहुत खुश हो गया । मगर मीरा खुश नहीं थी । जितने भी पैसे उसके पिता को मिलते, उतना ही उसका दहेज भी बढ़ता । जब दहेज अधिक होगा, तो बहुत-से लोग उससे शादी करना चाएंगे । ऐसे दु:ख भरे सपनों के साथ मीरा ने रात गुज़ारी । पाँच-छ: साल बीत गए । मीरा ने स्कूल खत्म कर लिया और घर में रहती थी । हर दिन उसे किसी न किसी काम पर डाँट पड़ती थी । उसकी माँ रोज उस पर चिल्लाती थीं कि मीरा ने खाना बिगाड़ दिया या कपड़े साफ नहीं धोए थे । उनके पिता राम यह सब देखकर दु:खी हो गए क्योंकि मीरा बहुत बुद्धिमान थी और वह बाहर के बड़े कालेज में जा पाती तो उसकी ज़िंदगी अच्छी हो जाती । अन्त में उन्होंने फैसला कर लिया कि वह मीरा को बाहर के कालेज में भेजेंगे , राघव को नहीं । उनकी पत्नी बहुत गुस्सा हो गईं, पर राम ने माने । उसने मीरा को बाहर के कालेज में भेज दिया । मीरा बहुत खुश हुई और खुशी से वहाँ गई । वह अपने घर में बहुत खुश नहीं थी और सोचती थी कि बाहर अलग ही आज़ाद ज़िंदगी होगी, जहाँ वह हर पल खुश रहेगी ।

परन्तु मीरा वहाँ हर पल खुश नहीं रहती थीं । वहाँ कालेज में वह किसी को नहीं जानती थी और बहुत कम लोग उससे बात करते थे क्योंकि उसकी अंग्रेजी अच्छी नहीं थी । वह दिखने में भी खास नहीं थी । कालेज में बहुत काम भी था । उसे काम करना तो आता था मगर समस्या थी कि उसे सब काम अंग्रेजी में करना होता था । वह सब काम दो-तीन दिन में देना होता था, स्कूल की तरह नहीं था । यहाँ मीरा की अध्यापिका हफ्ते में एक बार आती थी, सब किताबों पर बहुत अच्छा लिखकर चली जाती थी । इन सब मुश्किलों के साथ मीरा को वहाँ खाना भी अच्छा नहीं लगा । तभी उसको समझ में आया- "दूर के ढोल सुहावने होते हैं ।

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