Hindi, asked by chhaya6049, 9 months ago

a story on importance of shoes in hindi​

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Answered by nameless7
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इतने जूते आखिर कौन खरीदता होगा? सत्ताधारी दलों को तो इस खबर से धक्का लग सकता है कि जूतों की बिक्री लगातार बढ़ रही है। सरकार की तरफ से तो यही विनम्र प्रयास किया जाता रहा है कि जैसे भी हो, आम आदमी के पैर तक जूता न पहुंच पाए। जूता अगर पैर में आ गया, तो वह दिन दूर नहीं, जब वह हाथ में भी आ जाए। पांच साल में एक बार वोट देने वाले हाथों में जूता अच्छा नहीं लगता। वोट की तारीख और मियाद तय रहती है, मगर जूते का क्या है, जब-तब, वक्त-बेवक्त उठाया जा सकता है।

हाल के बरसों में जूतों की इतनी जबर्दस्त डिमांड से किसी भी सरकार का माथा ठनक सकता है। जब तक मंदिर से पुराने के बदले नए जूते बदलने का रिवाज कायम रहा, जूतों की ऐसी मांग नहीं देखी गई। मगर अब तो दशहरे-दीवाली का भी टोटका नहीं रहा और लोग जब चाहे, जूते खरीदने लगे हैं।

यह खतरनाक प्रवृत्ति है। मुझे तो लग रहा है पैर के लिए जूते खरीदने वाले तो कम ही हैं, मौके पर जूता उछालनेवाले ज्यादा हो गए हैं इन दिनों। जूते में कैद पैर कसमसाता रहता है कि निकालूं और दे मारूं। जब कोई चारा नहीं बचा हो, तो जूता ही काम आता है। पैर में खामोश जूता, हाथ में सबसे ज्यादा आवाज करता है। सरकार सिवाय टैक्स और दाम बढ़ाने के और क्या कर सकती है!

जूतों के बढ़ते दाम के साथ बढ़ती खपत खतरनाक संकेत है। सरकार को इस बारे में गंभीरता से चिंतन करना चाहिए। सरकार भी जूतों से डरती है, वरना क्या वजह है कि पेट्रोल के दाम बढ़ाने पर वह अपनी मजबूरी बताती है, लेकिन जूतों के बारे में उसकी बोलती बंद है।

जूतों का महंगा होना सरकार के लिए फायदेमंद हो सकता है, मगर उसकी मांग का बढ़ते जाना चिंता की बात है। यहां अर्थशास्त्र का वह नियम भी काम नहीं कर रहा है कि दाम बढ़ने से डिमांड कम हो जाती है। सरकार यदि आने वाले बरसों में जूतों के साथ भी हथियारों जैसा सुलूक करने लगे, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। सिर बचाने के लिए जूतों का लाइसेंसीकरण अवश्यंभावी है। मुझे तो ऐसा ही लग रहा है!

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