a story on vigyapan ka prabhav
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व्यवसाय के उत्तरोत्तर विकास, वस्तु की मांग को बाजार में बनाए रखने, नई वस्तु का परिचय जन-मानस तक प्रचलित करने, विक्रय में वृद्धि करने तथा अपने प्रतिष्ठान की प्रतिष्ठा यथावत् रखने इत्यादि कुछ प्रमुख उद्देश्यों को लेकर विज्ञापन किए जाते हैं । विज्ञापन का महत्व मात्र यहीं तक सीमित नहीं है, अपितु यह संचार शक्ति के सशक्त माध्यमों द्वारा क्रांति ला सकने की सम्भावनाएं एवं सामर्थ्य रखते है ।
सरकार की विकासोम्मुखी योजनाओं का प्रभावकारी क्रियान्वयन, जैसे-साक्षरता, परिवार नियोजन, पोलियो एवं कुष्ठ रोग निवारण हेतु महिला सशक्तीकरण, बेरोजगारी उन्मूलन हेतु, कृषि एवं विज्ञान सम्बन्धी, आदि; विज्ञापन के माध्यम से ही त्वरित एवं फलगामी होता है ।
व्यावसायिक हितों से लेकर सामाजिक-जनसेवा एवं देशहित तक विज्ञापन का क्षेत्र अति व्यापक एवं अति विस्तृत है । दूसरी ओर विज्ञापन संचार माध्यमों की आय का मुख्य स्रोत होता है । आधुनिक मीडिया का सम्पूर्ण साम्राज्य ही वस्तुत: विज्ञापन पर ही निर्भर है ।
प्रिंट मीडिया के विषय में इस तथ्य को इस प्रकार समझा जा सकता है कि भारत में प्रेस एवं अखबारों के विकास हेतु गठित द्वितीय प्रेस आयोग के कथनानुसार, पाठक द्वारा अखबार की कीमत के रूप में दी जाने वाली कीमत दो रूपों में होती है ।
उपभोक्तावाद के आधुनिक युग में वस्तुओं के निर्माता, विक्रेता एवं क्रेता हेतु विज्ञापन एक आधार प्रस्तुत करता है, इससे उत्पाद की मांग से लेकर उत्पाद की खपत तक जहां निर्माता अथवा विक्रेता हेतु यह अनुकूल परिस्थितियां बनाने में सहायक होता है, वहीं क्रेता अथवा खरीदार के लिए उसकी आवश्यकतानुरूप उत्पाद के चयन हेतु विविधता एवं एक दृष्टिकोण उपलब्ध कराता है ।
उल्लिखित प्रक्रिया में उत्पाद, निर्माता, विक्रता, क्रेता एवं विज्ञापन के अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण घटक वह माध्यम है, जिसके द्वारा विज्ञापित कोई विषय-वस्तु अनभिज्ञ व्यक्तियों को प्रभावित कर उन्हें क्रेता वर्ग में सम्मिलित कर देती है ।
रेडियो, टेलिविजन, समाचार-पत्र, पत्रिकाएं आदि आधारभूत एवं उपयोगी माध्यम कहे जाते हैं । सूचना संप्रेषण के ये स्रोत वस्तुत: विज्ञापन आधारित अर्थव्यवस्था पर निर्भर रहते हैं । विज्ञापन निश्चित रूप से एक कला है । लक्षित उद्देश्य की प्राप्ति इसका एकमात्र उद्देश्य होता है ।
विज्ञापन आज के उपभोक्तावादी चरण में इतना अधिक महत्व रखता है कि बड़ी से छोटी प्रत्येक स्तर की व्यावसायिक संस्थाएं अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा सदैव विज्ञापन के लिए व्यय करती है । विज्ञापन लाभ पर आधारित एक अपरिहार्य अनिवार्यता बन चुका है ।
सरकार की विकासोम्मुखी योजनाओं का प्रभावकारी क्रियान्वयन, जैसे-साक्षरता, परिवार नियोजन, पोलियो एवं कुष्ठ रोग निवारण हेतु महिला सशक्तीकरण, बेरोजगारी उन्मूलन हेतु, कृषि एवं विज्ञान सम्बन्धी, आदि; विज्ञापन के माध्यम से ही त्वरित एवं फलगामी होता है ।
व्यावसायिक हितों से लेकर सामाजिक-जनसेवा एवं देशहित तक विज्ञापन का क्षेत्र अति व्यापक एवं अति विस्तृत है । दूसरी ओर विज्ञापन संचार माध्यमों की आय का मुख्य स्रोत होता है । आधुनिक मीडिया का सम्पूर्ण साम्राज्य ही वस्तुत: विज्ञापन पर ही निर्भर है ।
प्रिंट मीडिया के विषय में इस तथ्य को इस प्रकार समझा जा सकता है कि भारत में प्रेस एवं अखबारों के विकास हेतु गठित द्वितीय प्रेस आयोग के कथनानुसार, पाठक द्वारा अखबार की कीमत के रूप में दी जाने वाली कीमत दो रूपों में होती है ।
उपभोक्तावाद के आधुनिक युग में वस्तुओं के निर्माता, विक्रेता एवं क्रेता हेतु विज्ञापन एक आधार प्रस्तुत करता है, इससे उत्पाद की मांग से लेकर उत्पाद की खपत तक जहां निर्माता अथवा विक्रेता हेतु यह अनुकूल परिस्थितियां बनाने में सहायक होता है, वहीं क्रेता अथवा खरीदार के लिए उसकी आवश्यकतानुरूप उत्पाद के चयन हेतु विविधता एवं एक दृष्टिकोण उपलब्ध कराता है ।
उल्लिखित प्रक्रिया में उत्पाद, निर्माता, विक्रता, क्रेता एवं विज्ञापन के अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण घटक वह माध्यम है, जिसके द्वारा विज्ञापित कोई विषय-वस्तु अनभिज्ञ व्यक्तियों को प्रभावित कर उन्हें क्रेता वर्ग में सम्मिलित कर देती है ।
रेडियो, टेलिविजन, समाचार-पत्र, पत्रिकाएं आदि आधारभूत एवं उपयोगी माध्यम कहे जाते हैं । सूचना संप्रेषण के ये स्रोत वस्तुत: विज्ञापन आधारित अर्थव्यवस्था पर निर्भर रहते हैं । विज्ञापन निश्चित रूप से एक कला है । लक्षित उद्देश्य की प्राप्ति इसका एकमात्र उद्देश्य होता है ।
विज्ञापन आज के उपभोक्तावादी चरण में इतना अधिक महत्व रखता है कि बड़ी से छोटी प्रत्येक स्तर की व्यावसायिक संस्थाएं अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा सदैव विज्ञापन के लिए व्यय करती है । विज्ञापन लाभ पर आधारित एक अपरिहार्य अनिवार्यता बन चुका है ।
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