a swachhata ka Karan aur rokane ke upay
Answers
Explanation:
1. शारीरिक स्वच्छता के विषय में हिन्दुस्तान की कुछ जातियों ने तो ठीक तौर से ध्यान दिया है, पर साधारण जनता में इस विषय में अभी बहुत काम करना है।
2. बच्चे की सफाई पर तो उन जातियों में भी बहुत कम ध्यान दिया जाता है। बालक के खुद सफाई रखने के लायक होने के पहले उसके माँ-बाप उसे साफ-सुथरा रखने की फिक्र रखते हों, यह नहीं दिखाई देता।
3. नित्य स्नान करना चाहिए, इसे हिन्दुओं का बहुत बड़ा भाग धार्मिक नियम की भाँति मानता है, पर हिन्दू मात्र ऐसा मानते हैं, यह नहीं कह सकते। दूसरे हिन्दुस्तानियों में रोज नहाने की आदत आम नहीं है। हिन्दुस्तान में रोज नहाना स्वच्छता और साथ ही आरोग्य के लिए आवश्यक है।
4. नहाने का मतलब सिर्फ बदन गीला कर लेना नहीं है। बहुतेरे नित्य नहाने वाले इससे आगे नहीं बढ़ते। नहाने के माने हैं शरीर का मैल साफ करके त्वचा के छिद्रों को खोल देना। अतः नहाने का पानी पीने के पानी जितना ही साफ होना चाहिए। ऐसा पानी काफी मात्रा में रोज न मिल सके, तो गंदे पानी में नहाने की बनिस्बत साफ पानी में कपड़ा भिगोकर उससे शरीर को रगड़कर पोंछ डालना कहीं अच्छा है। हमारे देश के गाँवों में ही नहीं, बड़े-बड़े कस्बों में भी लोग जैसे पानी से नहाते हैं, उसे नहाने लायक नहीं कह सकते।
5. आँख, नाक, कान, दाँत, नाखून, बगल, काछ आदि अवयव, जिनसे मैल निकलता है अथवा जिनमें मैल भरा रहता है, उनकी सफाई की तरफ सभी लोगों में- खासकर बच्चों के बारे में- बहुत लापरवाही रखी जाती है। छोटे बच्चों में आमतौर पर होनेवाली आँख की बीमारियाँ रोज आँख और नाक को साफ पानी और साफ कपड़े से साफ न कर देने का नतीजा है। इस विषय में सफाई के लिए मुनासिब आदतें लगाने और गंदगी से घिन करना सिखाने की ओर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। अतः ग्राम-सेवकों और शिक्षकों को इस विषय पर बहुत बारीकी से ध्यान देना चाहिए।
6. कपड़ों की सफाई भी शारीरिक स्वच्छता का ही भाग है। कपड़ों की गंदगी का कारण केवल दरिद्रता ही नहीं कही जा सकती। बहुतेरी गंदगी तो अच्छी आदतें न पड़ी होने से और आलस्य के कारण रहती है।
7. चकती लगे कपड़ों से हमारी दरिद्रता प्रकट होती है, तो इससे हमें शर्मिन्दा होने की जरूरत नहीं। शूर-वीर के लिए जैसे घाव भूषण रूप होता है, वैसे ही गरीब के लिए पैबंद भी भूषण समझा जाता है। पर कपड़ों को फटा और गंदा रखकर मनुष्य अपनी गरीबी का नहीं बल्कि अपने फूहड़पन और आलस्य का विज्ञापन करता है और यह जरूर शर्मिन्दा होने लायक बात है।
8. साफ, कपड़े दूध की तरह सफेद होने चाहिए, ऐसी बात नहीं है। मेहनत-मजदूरी करने वाले गरीब लोग सफेद दूध जैसे कपड़े रखकर पानी नहीं पा सकते। पर साफ पानी से उन्हें बार-बार धोना, बीच-बीच में साबुन या खार आदि से धो लेना और गरम पानी में डालकर जन्तुरहित कर लेना आवश्यक है।
9. बदन पर पहने हुए कपड़ों से ही नाक, हाथ वगैरह पोंछना और उनमें रोटियाँ या खाने की दूसरी चीजें बाँध लेना बड़ी गन्दी आदत है। जिनके पास बदन पर के कपड़ों के सिवा दूसरा कपड़ा ही नहीं है, उन्हें छोड़कर औरों को तो इसके लिए पुराने कपड़ों में से छोटा-सा रूमाल बनाकर उसका उपयोग करना चाहिए। इसमें कुछ खर्च नहीं लगता और स्वच्छता की रक्षा होती है। इसे साफ रखना बहुत आसान है।