Math, asked by Ds1ds2ds3, 1 year ago

A tank of 10000 litre capacity is being filled with gasoline by two pumps. The second of which supplies 10 litre less a minute than first .In 10 minutes the tank is half fill .How many litres of gasoline does each pump pour in .

Answers

Answered by amitnrw
17

Answer:

255 & 245 litre per minute

Step-by-step explanation:

A tank of 10000 litre capacity is being filled with gasoline by two pumps. The second of which supplies 10 litre less a minute than first .In 10 minutes the tank is half fill

Let say first pump fill x litre in a min

then second pump fills x-10 litre in a min

both together fills in one minute = x + x -10 litre = 2x -10 litre

tank filled in 10 mins = 10(2x -10)

= 20x - 100

=20(x -5) litre

tank in 10 mins half filled = 10000/2 = 5000 litre

20(x-5) = 5000

=> x -5 = 250

=> x = 255

first pump fills 255 litre per min

second pump fills 245 litre per min

Answered by ItarSvaran
3

Answer:

kya Kavita Atal Bihari Vajpayee dwara Rachit hai Upar aap ka prashn hai hi aur Teesra prashn uske sath bonus

Step-by-step explanation:

कोटि-कोटि आकुल हृदयों में

सुलग रही है जो चिनगारी,

अमर आग है, अमर आग है।

उत्तर दिशि में अजित दुर्ग सा,

जागरूक प्रहरी युग-युग का,

मूर्तिमन्त स्थैर्य, धीरता की प्रतिमा सा,

अटल अडिग नगपति विशाल है।

नभ की छाती को छूता सा,

कीर्ति-पुंज सा,

दिव्य दीपकों के प्रकाश में-

झिलमिल झिलमिल

ज्योतित मां का पूज्य भाल है।

कौन कह रहा उसे हिमालय?

वह तो हिमावृत्त ज्वालागिरि,

अणु-अणु, कण-कण, गह्वर-कन्दर,

गुंजित ध्वनित कर रहा अब तक

डिम-डिम डमरू का भैरव स्वर ।

गौरीशंकर के गिरि गह्वर

शैल-शिखर, निर्झर, वन-उपवन,

तरु तृण दीपित ।

शंकर के तीसरे नयन की-

प्रलय-वह्नि से जगमग ज्योतित।

जिसको छू कर,

क्षण भर ही में

काम रह गया था मुट्ठी भर ।

यही आग ले प्रतिदिन प्राची

अपना अरुण सुहाग सजाती,

और प्रखर दिनकर की,

कंचन काया,

इसी आग में पल कर

निशि-निशि, दिन-दिन,

जल-जल, प्रतिपल,

सृष्टि-प्रलय-पर्यन्त तमावृत

जगती को रास्ता दिखाती।

यही आग ले हिन्द महासागर की

छाती है धधकाती।

लहर-लहर प्रज्वाल लपट बन

पूर्व-पश्चिमी घाटों को छू,

सदियों की हतभाग्य निशा में

सोये शिलाखण्ड सुलगाती।

नयन-नयन में यही आग ले,

कंठ-कंठ में प्रलय-राग ले,

अब तक हिन्दुस्तान जिया है।

इसी आग की दिव्य विभा में,

सप्त-सिंधु के कल कछार पर,

सुर-सरिता की धवल धार पर

तीर-तटों पर,

पर्णकुटी में, पर्णासन पर,

कोटि-कोटि ऋषियों-मुनियों ने

दिव्य ज्ञान का सोम पिया था।

जिसका कुछ उच्छिष्ट मात्र

बर्बर पश्चिम ने,

दया दान सा,

निज जीवन को सफल मान कर,

कर पसार कर,

सिर-आंखों पर धार लिया था।

वेद-वेद के मंत्र-मंत्र में,

मंत्र-मंत्र की पंक्ति-पंक्ति में,

पंक्ति-पंक्ति के शब्द-शब्द में,

शब्द-शब्द के अक्षर स्वर में,

दिव्य ज्ञान-आलोक प्रदीपित,

सत्यं, शिवं, सुन्दरं शोभित,

कपिल, कणाद और जैमिनि की

स्वानुभूति का अमर प्रकाशन,

विशद-विवेचन, प्रत्यालोचन,

ब्रह्म, जगत, माया का दर्शन ।

कोटि-कोटि कंठों में गूँजा

जो अति मंगलमय स्वर्गिक स्वर,

अमर राग है, अमर राग है।

कोटि-कोटि आकुल हृदयों में

सुलग रही है जो चिनगारी

अमर आग है, अमर आग है।

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