Accountancy, asked by choudharyshafat494, 6 months ago

अंतरिम अंकेशन का कार्यक्षेत्र निम्न में होता है​

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Answered by jiya9614
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जिस प्रकार शरीर की व्यवस्थता की जाँच डॉक्टर से कराना आवश्यक है, उसी प्रकार लेख-पुस्तकों की जाँच अंकेक्षण से कराना आवश्यक है। डॉक्टर शरीर जाँच के बाद यह प्रमाणित करता है कि शरीर में दोष है या नहीं; यदि है तो किस प्रकार का है, ऐसा रिपोर्ट में लिख देता है। उसी प्रकार लेखा पुस्तकों का डॉक्टर (अंकेक्षण) भी उनके दोषी होने या दोषी ना होने का एक रिपोर्ट देता है। अंकेक्षण से तात्पर्य किसी संस्था की लेखा-पुस्तकों की विशिष्ट एवं आलोचनात्मक जाँच से है जो एक योग्य एवं निष्पक्ष युक्ति के द्वारा प्रमाणकों, प्रपत्रों सूचना तथा स्पष्टीकरणों की सहायता से की जाती है।

अंकेक्षण की उत्पत्ति

अंग्रेजी भाषा का शब्द आडिटिंग (Auditing), जिसका हिन्दी अनुवाद ‘अंकेक्षण’ है, लेटिन भाषा के शब्द आडायर (Audire) से बना है, जिसका अर्थ है सुनना (To hear)। प्राचीन समय में हिसाब-किताब रखने वाले व्यक्ति, अर्थात् लेखपाल, लेखा पुस्तकों को लेकर एक निष्पक्ष व्यक्ति के पास जाते थे तथा हिसाब-किताब उसे सुनाते थे। ये निष्पक्ष व्यक्ति प्राय: न्यायाधीश होते थे तो हिसाब-किताब को सुनकर अपना निर्णय देते थे। इस सुनने की प्रक्रिया को अंकेक्षण (Auditing) तथा सुनने वाले निष्पक्ष व्यक्ति को अंकेक्षक (Auditor) कहा जाने लगा। 

‘‘अंकेक्षण’’ से आशय किसी संस्था की लेखा-पुस्तकों की विशिष्ट एवं आलोचनात्मक जाँच से है जो एक योग्य एवं निष्पक्ष व्यक्ति (अंकेक्षण) द्वारा प्रमाणकों (vouchers), प्रपत्रों (documents), सूचना (information), तथा स्पष्टीकरणों (explanations), की सहायता से की जाती है जिससे यह पता लगाया जा सके कि (i) संस्था का लाभ-हानि खाता एक निश्चित अवधि के लिए सही लाभ या हानि दर्शाता है या नहीं, (ii) चिट्ठा एक निश्चित तिथि को सही एवं वास्तविक आर्थिक स्थिति में है या नहीं, और (iii) लेखे नियमानुसार बनाए गए हैं या नहीं उपरोक्त परिभाषा के आधार पर अंकेक्षण के तत्व (लक्षण) है:-

लेखा-पुस्तकें-अंकेक्षक संस्था के हिसाब-किताब की पुस्तकें जिनमें समस्त सौदों का लेखा किया गया है, इनकी प्रविष्टियों की जाँच करके ही अपनी रिपोर्ट देता है।

योग्य एवं निष्पक्ष व्यक्ति- जाँच का यह कार्य ऐसे निष्पक्ष व्यक्ति द्वारा किया जाए, जो इसके लिए सर्वथा योग्य हो।

जाँच- लेखा-पुस्तकों में किए गए लेखों की गणितीय शुद्धता नहीं देखी जाती बल्कि ऐसी विशिष्ट एवं आलोचानात्मक जाँच की जाती है जिसके परिणामस्वरूप इन लेखों की वास्तविकता, पूर्णता तथा सत्यता का पता चल सके।

संस्था-पहले केवल व्यापारिक संस्थाओं को ही अंकेक्षण के दृष्टिकोण से संस्था माना जाता था, जैसा कि ‘स्पाइ एवं पैगलर’ द्वारा दी गई परिभाषा से स्पष्ट है। परन्तु आजकल अंकेक्षण का क्षेत्रा काफी विस्तृत हो गया है अब ऐसी संस्थाओं का अंकेक्षण भी कराया जाने लगा है जो व्यापार नहीं करती जैसे-क्लब, कालेज आदि।

निश्चित अवधि- अंकेक्षक का कार्य किसी निश्चित अवधि के लेखों के सम्बन्ध में जाँच-पड़ताल करके रिपोर्ट प्रस्तुत करना है। व्यापारिक संस्थाओं में यह अवधि प्राय: एक वर्ष होती है। इस अवधि के सम्बन्ध में बनाये गए लाभ-हानि खाते की जाँच करके यह पता लगाना कि इसमें दर्शाया गया लाभ-हानि खाते की जाँच करके यह पता लगाना कि इसमें दर्शाया गया लाभ-हानि सही है अथवा नहीं।

प्रमाणक एवं प्रपत्र- अंकेक्षक उन प्रमाण कों को देखता है, जिनके आधार पर लेखा-पुस्तकों में लेखे किए गए हैं। इसके अतिरिक्त वह संस्था का उद्देश्य पत्र-व्यवहार, मिनट-बुक, अन्तर्नियम तथा अन्य कोई भी प्रपत्रा, जो वह जाँच के सम्बन्ध में निरीक्षण, मिलान, परीक्षण, पुनर्निरीक्षण आदि करने हेतु आवश्यक समझता है, देख सकता है।

सूचना एवं स्पष्टीकरण- यदि अंकेक्षण प्रमाणक या अन्य प्रपत्रा से संतुष्ट नहीं हो सका तो वह अपनी पूर्ण जानकारी हेतु आवश्यक सूचना माँग सकता है तथा अस्पष्ट बातों का स्पष्टीकरण प्राप्त कर सकता है।

नियमानुकूल- संस्था से सम्बन्धित विशेष अधिनियम तथा देश के विधान के नियमानुकूल संस्था का हिसाब-किताब रखा गया है या नहीं, अंकेक्षण को अपनी रिपोर्ट में इस बात का प्रमाण-पत्रा देना पड़ता है। 

सही एवं वास्तविक आर्थिक स्थिति- निश्चित अवधि के अन्तिम दिन संस्था के चिट्ठे में जो सम्पत्तियाँ एवं दायित्व दिखलाये गए हैं, उनका धन सही है या नहीं। अर्थात उक्त तिथि को संस्था का चिट्ठा संस्था की सही एवं वास्तविक आर्थिक स्थिति दिखलाता है या नहीं।

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