Political Science, asked by jyotikumarijk3849, 1 month ago

अंतर्थाष्ट्रीय संबंध केअध्ययन केललए नव&उदथर्वथदी संस्र्थवथद केमुख्य लक्षणों की वववेचनथ कीजजए।​

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Answered by umang5884
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Answer:

अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों के सिद्धान्त में सैद्धान्तिक परिप्रेक्ष्य से अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। यह एक ऐसा वैचारिक ढाँचा प्रदान करने का प्रयास करता है जिससे अन्तरराष्ट्रीय सबन्धों का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जा सके।[1] ओले होल्स्ती कहता है की अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों के सिद्धान्त रंगीन धूप के चश्में की एक जोड़ी के रूप में कार्य करते हैं, जो उसे पहनने वाले व्यक्ति को केवल मुख्य सिद्धान्त के लिए प्रासंगिक घटनाओं को देखने की अनुमति देता है । अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों में यथार्थवाद, उदारवाद और रचनावाद, तीन सबसे लोकप्रिय सिद्धांत हैं।[2]

अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों के सिद्धान्त मुख्यत: दो सिद्धान्तों में विभाजित किये जा सकते हैं, "प्रत्यक्षवादी/बुद्धिवादी" जो मुख्यत: राज्य स्तर के विश्लेषण पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। और उत्तर-प्रत्यक्षवादी / चिन्तनशील जो अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों के सिद्धान्त में उत्तर औपनिवेशिक युग में सुरक्षा, वर्ग, लिंग आदि के विस्तारित अर्थ को शामिल करवाना चाहते हैं। आईआर (IR) सिद्धान्तो में 443333 विचारों के अक्सर कई विरोधाभासी तरीके मौजूद हैं, जैसे अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों (IR) में रचनावाद, संस्थावाद, मार्क्सवाद, नव-ग्रामस्कियनवाद (neo-Gramscianism), और अन्य। हालाँकि, प्रत्यक्षवादी सिद्धान्तों के स्कूलों में सबसे अधिक प्रचलित यथार्थवाद और उदारवाद हैं। यद्यपि, रचनावाद अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों में तेजी से मुख्यधारा होता जा रहा है।

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