अंतस्थ व्यंजन किसे कहते हैं?
Answers
Answer:
अन्त:स्थ व्यंजन अन्त:करण से उच्चारित होने वाले व्यंजनों को कहा जाता है। जैसे- य’, ‘र’, ‘ल’ और ‘व’।
Explanation:
अन्त:स्थ का अर्थ
अर्थ
भीतर रहने वाला, अंदर का, भीतरी, बीच में स्थित, अन्त:करण में स्थित, मन में होने/रहने वाला, हृदयस्थ।
विशेष
अन्त:स्थ ध्वनियों / वर्णों को ‘अर्धस्वर’ भी कहा जाता है। अन्त:स्थ (अंत:स्थ) राज्य- पुल्लिंग = (राज) दो बड़े देशों के बीच में स्थित बहुत छोटा देश जिससे दोनों देशों में प्रत्यक्ष युद्ध की सम्भावना कम होती है। अन्तर्रोधी राज्य। (अंग्रेज़ी- बफ़र स्टेट)
संस्कृत
[अन्त:+ स्थ]....
अन्तस्थ व्यंजन –जिन वर्णों का उच्चारण करते समय जीभ मुख के भीतरी भागों को मामूली सा स्पर्श करता है अर्थात जिनका उच्चारण स्वरों व व्यंजनों के बीच स्थित हो, उसे अंतस्थ व्यंजन कहते हैं । इनकी संख्या 4 होती है- य, र, ल, व ।
- उन व्यंजन को अन्तःस्थ व्यंजन कहा जाता है, जिनका उच्चारण जीभ, तालु, दांत और होठों के परस्पर सटने की वजह से होता है। इन व्यंजन के उच्चारण के समय सांस की गति अन्य व्यंजन के उच्चारण की तुलना में काफी कम होती है। इन चारों व्यंजनों को स्पर्शहीन वर्ण के नाम से भी पहचाना जाता है।
- इन व्यंजनो को अर्ध स्वर वर्ण इसलिए बोला जाता है। क्योंकि इन व्यंजनों के उच्चारण स्वर की भांति किए जाते हैं। स्वर की तरह ही इन व्यंजन को बोलने में ज्यादा घर्षण नहीं होता है।
- अंतस्थ व्यंजन मे “र” जिसे प्रकंपित नाम से जाना जाता है। एंजेल का उच्चारण जब करते हैं तो जीभ मुख्य के बीच में आ जाती है और झटके से आगे पीछे चलती है। तब इस व्यंजन का उच्चारण होता है।
- “ल” व्यंजन का उच्चारण जब करते हैं तब जीव का अगला हिस्सा मूख के बीचो बीच में आता है। जब इस व्यंजन का उच्चारण किया जाता है। तब जीभ के दोनों किनारों से हवा बाहर निकलती है।
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