अंतस्थ व्यंजन किसे कहते हैं
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हिंदी वर्णमाला में "स्पर्श" और "ऊष्म" वर्णों के बीच पड़ने वाले चार वर्ण यथा- य, र, ल, व को अंतःस्थ व्यंजन कहा जाता है। अंत:स्थ का अर्थ ही है - भीतर या मध्य में स्थित।
इन अन्तःस्थ वर्णों के उच्चारण में श्वास की गति अन्य दूसरे व्यंजनों से अपेक्षाकृत कम होती है। इन चार वर्णों में "य" तथा "व" वर्णों को अर्द्धस्वर या संघर्षहीन वर्ण के नाम से भी जाना जाता है।
इन्हें अर्द्धस्वर इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये स्वरों की भाँति उच्चारित होते हैं और इनके बोलने में ज्यादा घर्षण नही होता है।
इनके अतिरिक्त शेष अन्तःस्थ व्यंजनों में "र" वर्ण को लुंठित या प्रकंपित नाम दिया गया है क्योंकि "र" के उच्चारण करने में जीभ प्रायः मुख के बीच आ जाती है और झटके से आगे - पीछे चलती है।
"ल" वर्ण को पार्श्विक वर्ण भी कहा जाता है क्योंकि "ल" वर्ण के उच्चारण में जीभ का अगला हिस्सा मुख के बीचो-बीच आने से ये एक अथवा दोनों तरफ पार्श्व (किनारा) बना लेती है जिससे उच्चारण करते समय जीभ के दोनों किनारों (पार्श्वों) से होकर वायु बाहर निकलती है।