अंधेर नगरी चौपट राजा लोकोकित का अर्थ
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राजा, सुगठित प्रशासन और न्याय के लिए जाने जाते रहे हैं.
जिस राज्य का राजा बिना विवेक के, बिना विचार के, बिना उचित न्य्याय के, बिना देश हित को सोच कर कार्य करता है वह चौपट राजा कहलाता है. राजा का “मूड” किस बात पर बिगड़ जाए, किस बात पर बन जाए, कहा नहीं जा सकता. अपने कार्य-कलापों में वह unpredictable तथा, विचार हीन होता है, जिसकी सज़ा मासूम प्रजा को भी भुगतनी पड़ती है. एक निर्दोष सज़ा पा सकता है और एक दोषी सम्मान.
अंधेर नगरी भी ऎसी ही एक काल्पनिक जगह है जहां सब कुछ विचार हीन है. कोई तर्क नहीं चलता, कोई विचार नहीं कोई औचित्य नहीं. प्रजा के हाथ में इतनी शक्ति भी नहीं कई वह राजा को सुधार सके.
राजा प्रजा का मुखिया होता है. अगर राजा ही चौपट है, तो प्रजा उसीके हाँ में हाँ मिलाएगी और विचार हीन, न्याय हीन रहेगी. सबकुछ गड़बड़.
इसकी दूसरी पंक्ति है” टके सेर भाजी, टके सेर खाजा “ यानि सारी चीज़ों का एक ही दाम है, मूल्य की कोई पहचान नहीं. मूर्ख और विद्वान् बराबर हैं. - क्योंकि पहचान ही नहीं है.
जहां का मुखिया और उसके फालोअर्स तर्क संगत बातें न करें, विचार को तिलांजलि दे दें, उनके सन्दर्भ में उपरोक्त कहावत कही जाती है.
“भारतेंदु हरिश्चन्द्र” के एक प्रमुख हास्य नाटक का नाम “अंधेर नगरी चौपट राजा” है.
kartavyabhrashta shasan ke rajya me sada