Hindi, asked by brajeshlodhi1999, 7 months ago

अंधेर नगरी नाटक आज भी प्रासंगिक है" स्पष्ट कीजिए।​

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Answered by mandalsneha959
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उस समय भारतेन्दु कह रहे हैं कि सच बोलने वालों को सजा मिलती है और झूठे पदवी पाते हैं, छलियो की एकता के जोर के आगे कोई नहीं टिक पाता, अंदर से कलुषता से भरे लोग बाहर से चमकदार दिखते रहते हैं, कोशिश में रहते हैं दिखने की. धर्म और अधर्म सब एक हो गया है, न्याय वही जो राजा कहे, सुप्रीम कोर्ट भी कहे तो उसे चुनौती दी जाए. और ऐसे हालात में देश पहुंच जाए कि लगे ही ना कि शासक यहां रहता है. यहां यह जो पंक्ति है “अंधाधुंध मच्यो सब देसा मानहु राजा रहत बिदेसा” ये पँक्तियां भारतेंदु व्यंग्य में कह रहे हैं लेकिन उस समय का सच भी था कि भारत के शासन की कमान विदेशी शासकों के हाथ मे थी. लेकिन आज? ये पंक्तियां बहुत प्रासंगिक हैं क्योंकि राजा सच में विदेश में रहते हैं, या देश में ही उन्होंने अपना विदेश निर्मित कर लिया है क्योंकि देश के सुचारू संचालन में उनकी रूचि नहीं रह गई. स्थितियां कई बार ऐसी अनियंत्रित हुईं, हो रही है कि उपस्थिति का इकबाल भी समाप्तप्राय है. लोकतांत्रिक व्यवस्था के सारे इदारों में घमासान मचा हुआ है. दरबार में मुर्खों का जमावड़ा है, मुर्ख और जनविरोधी एक तरफ हो गए हैं और बुद्धिजीवियों को उन्होंने खिलाफ मान लिया है. राजा को पान देने वाले, किसी और की गुनाह की सजा किसी और को दिलाने वाले मंत्री भरे पड़े हैं. ‘अंधेर नगरी’ राजा के दरबार मे क्या होता है? फरियादी की बकरी की मौत का जिम्मेदार दीवार को तलब किये जाने से सिलसिला शुरू होता है और क्रमशः बनिया, कारीगर, चुनेवाला, भिश्ती, कसाई से होते हुए सजा की सुई कोतवाल पर टिक जाती है जो कि शहर का ‘इंतजाम’ देखने निकले हैं, इस बदइंतजामी का जो इंतजाम करेगा वह तो गुनाहगार हैं ही. इस दृश्य को पढ़ते हुए जो बात ध्यान देने की है वह असंगत संवादों की योजना है जो राजा की मुर्खता को और गाढ़ा करने और हास्य की रचना के लिए है। दृश्य के अंत मे भारतेन्दु का रंग संकेत ऐसा दृश्य उपस्थित करता है जिसमें संवाद नहीं है लेकिन व्यंजकता तीक्ष्ण है... (लोग एक तरफ से कोतवाल को पकड़ कर ले जाते हैं, दूसरी ओर से मंत्री को पकड़ कर राजा जाते हैं) दृश्य के अन्त तक राजा अपने पैरों से नहीं चल पाता उसे सहारा चाहिए. आज के समय में भी शासक अपने पैरों पर नहीं बहुत से बाहरी शक्तियों के सहारों पर है, और राजा शक्ति के नशे में गाफिल हैं.

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Answered by shishir303
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अंधेर नगरी नाटक आज भी प्रासंगिक है" स्पष्ट कीजिए।​

अंधेर नगरी नाटक आज भी प्रासंगिक है क्योंकि यह सामाजिक समकालीनता की कसौटी पर आज के समय में भी प्रासंगिक है। अंधेर नगरी नाटक में राज व्यवस्था का जो चित्रण प्रस्तुत किया गया है वह आज भी बदस्तूर जारी है। इस नाटक में आम आदमी पर कर के बोझ को दिखाया गया है जो आज के समय में भी एक आम समस्या है।

नौकरशाही की असंवेदनशीलता, अकर्मण्यता, उदासीनता को स्नातक के माध्यम से रेखांकित किया है। यह सारी समस्याएं आज की शासन व्यवस्था में भी नौकरशाही लालफीताशाही के जाल में उलझी हुई है और सरकारी कर्मचारी अकर्मण्यता व उदासीनता के जीते जागते उदाहरण बनते जा रहे हैं। इसलिए ये नाटक जो कि 150 साल पहले रचा गया आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उसने समय था।

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भारतेंदु का वास्तविक नाम क्या है

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'विषस्य विषमौषधम्' निम्नलिखित में से है-

(i) कहानी

(iii) नाटक

(ii) उपन्यास

(iv) निबन्ध।

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