अंधकार और अस्तित्व कहां होता है
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आलोक के प्रति निराश होने का कोई कारण नहीं है। वस्तुतः अंधकार जितना घना होता है, प्रभात उतना ही निकट आ जाता है… मैं मनुष्य को एक घने अंधकार में देख रहा हूं। जैसे अंधेरी रात में किसी घर का दीया बुझ जाये, ऐसा ही आज मनुष्य हो गया है। उसके भीतर कुछ बुझ गया है। पर- जो बुझ गया है, उसे प्रज्वलित किया जा सकता है।
और, मैं मनुष्य को दिशाहीन हुआ देख रहा हूं। जैसे कोई नाव अनंत सागर में राह भूल जाती है, ऐसा ही आज मनुष्य हो गया है। वह भूल गया है कि उसे कहां जाना है और क्या होना है? पर, जो विस्मृत हो गया है, उसकी स्मृति को उसमें पुनः जगाया जा सकता है। इसलिए, अंधकार है, पर आलोक के प्रति निराश होने का कोई कारण नहीं है। वस्तुतः अंधकार जितना घना होता है, प्रभात उतना ही निकट आ जाता है।
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