Hindi, asked by jamalshaikh19texted, 1 year ago

अंधश्रद्धा निर्मूलन संबंधी स्वयं किए हुए कार्य बताओ:
घर में
विद्यालय में
परीवेश(society)में

PLZ answer as fast as possible
in Hindi I want the answer​

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Answers

Answered by sairaj2003
23

Explanation:

घर पर

1. लोग घर में अनुष्ठान करते हैं।

2. लोग अपने ही परिवार को मार देते हैं।

विद्यालय में

1. बच्चे अच्छी तरह से अध्ययन नहीं करते हैं या पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते हैं।

2. नतीजतन, बच्चों को कम अंक और खराब ग्रेड मिलते हैं

समाज में

1. लोग हर झूठे बयान पर विश्वास करने लगते हैं

2. लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि वे क्या कर रहे हैं।

Answered by kes50saiamrutha6c
9

Discription :

Below is the answer and hope it helps you, please mark me as brainliest if you think it's the correct answer...

Thank you

Answer :

उत्तर :

घर में :

मेरे घर में जब भी कोई काँच टूटता था तब दादी कहती थी कि आज जरूर कुछ बुरा होगा लेकिन मैंने उनको समझाया कि ऐसा कुछ नहीं होता। काँच एक वस्तु है और वह कभी भी गलती से गिरकर टूट सकता है और फिर एक दिन सुबह उनके हाथ से काँच टूटा तो उनका मन घबरा गया लेकिन उस दिन कुछ भी बुरा नहीं हुआ। उस दिन दादी समझ गई कि सच में वे आज तक अंधश्रद्धा में जी रही थीं।

वीद्यालय में :

वह हर साल परीक्षा में पास होने के लिए मन्नते भी माँगता था। एक दिन मैंने उसे समझाया कि भगवान पर श्रद्धा रखना अच्छी बात है लेकिन भगवान तुम्हें परीक्षा में पास कर देंगे यह अंधश्रद्धा रखना सही नहीं है। भगवान केवल मार्ग दिखाएँगे और तुम्हें कड़ी मेहनत करके उस मार्ग से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना होगा। तुम्हारा लक्ष्य परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होना है तो उसके लिए तुम्हें पढ़ाई करनी पड़ेगी। मेरे दोस्त को मेरी बात समझ में आ गई, फिर हम दोनों मिलकर रोज एक साथ पढ़ाई करने लगे और दोनों परीक्षा में अच्छे अंकों से पास हो गए।

परिसर में :

हमारी सोसायटी में एक युवक साधु जैसा भेस बनाकर रोज आता था और भगवान के नाम पर पैसे माँगता था। सब लोग भगवान के नाम पर उसे दस बीस रुपये दे देते थे। एक दिन मैंने उस साधु को सड़क के किनारे एक दुकान के पास सिगरेट पीते देखा तब मैं समझ गया कि यह हमारी सोसायटी और अन्य घरों से भगवान के नाम पर पैसे माँगता है तथा उन पैसे से व्यसन करता है। यह बात मैंने अपने घर पर बताई और फिर मेरे पापा ने यह बात सोसायटी के सदस्यों को बताई। सब लोग समझ गए थे कि ऐसे पाखंडी लोग किस तरह हम जैसे लोगों को अंधश्रद्धा में डालकर हमसे पैसे माँगते हैं। एक दिन जब वह सोसायटी में आया तो साधु को किसी ने पैसे नहींदिए। सभी उससे कहने लगे इतने हट्टे कट्टे हो मेहनत करके खाओ। भगवान के नाम पर लोगों को ठगना बंद करो। उस दिन के बाद वह साधु फिर कभी हमारी सोसायटी में नजर नहीं आया।

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