अंधश्रध्दा व कर्मकांड यांचा समाजावर कश्याप्रकारे जबरदस्त पगडा होता ते तुमच्या 100 शब्दात लिहा
plz this is important for me so plz try to answer it fast and true
Answers
Answer:
bhai ye to mere sir ke upar se gaya
Answer:
I think it is a fair answer
Explanation:
विभिन्न अवसरों पर की जाने वाली पारम्परिक पूजा-ऋचा का क्रियात्मक रूप कर्मकाण्ड कहलाता है। संपादित करें
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने एक पुस्तक[1] में जहाँ कर्मकाण्डों का महत्व और औचित्य प्रतिपादित किया है वहीं वृन्दवानस्थ पंडित विजय प्रकाश शास्त्री जैसे कुछ विद्वानों के अनुसार वेद में कर्मकाण्ड, उपासनाकाण्ड और ज्ञानकाण्ड - इन तीनों का वर्णन मिलता है। वेद के कुल एक लाख मंत्र हैं- चार हजार ज्ञान काण्ड के, सोलह हजार उपासना काण्ड के और सबसे ज्यादा अस्सी हजार कर्मकाण्ड के हैं। इसलिए कर्मकाण्ड को प्रधान स्थान प्राप्त है। इस प्रकार वेद के तीन भाग हैं। ‘‘तीन काण्ड एकत्व शान - वेद। वेद के कर्मकाण्ड भाग में यज्ञादि विविध अनुष्ठानों का विशेष रूप से वर्णन मिलता है अतः यज्ञ कर्मकाण्ड ही वेदों का मुख्य विषय है। वेदों का मुख्य विषय होने के कारण कर्मकाण्ड में मंत्रों का प्रयोग (उच्चारण) किया जाता है। वेद मंत्रों के बिना कर्मकाण्ड नहीं हो सकता और कर्मकाण्ड के बिना मंत्रों का ठीक-ठीक सदुपयोग नहीं हो सकता। अतः स्पष्ट है कि वेद हैं तो कर्मकाण्ड है और कर्मकाण्ड है तो वेद हैं। विष्णु धर्मोत्तर पुराण (2/04) में वर्णन आता है वेदास्तु यज्ञार्थ मभिप्रवृत्ताः। इस वचन से तथा भगवान मनु के दुदोह यज्ञ सिद्धयमि 1/23 इस वाक्य से स्पष्ट सिद्ध है कि वेदों का प्रादुर्भाव कर्मकाण्ड, यज्ञ, अनुष्ठान के लिए हुआ है। जिस प्रकार वेद दुरूह हैं उसी प्रकार वेदांग भूत कर्मकाण्ड भी अत्यंत दुरूह है। जिस प्रकार वेद में उपास्य देवता हैं उसी प्रकार कर्मकाण्ड में भी उपास्य देवता हैं। जिस प्रकार वेद उपास्य वेद किसी पुरूष के द्वारा न बनाया हुआ। नित्य और अनादि है- पराशर स्मृति में वर्णन आता.
marke me as brainlist please