अंधविश्वास करना ठीक नहीं है - इस विशय पर 60 - 70 शब्दों में अपने विचार वयकत कीजिए।
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sdfv
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अंधविश्वास :
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अंधविश्वास आज के समय की सबसे बड़ी समस्या है। किसी पर भी अंधाधुंध यकीन करना अंधविश्वास कहलाता है। भारत की अधिकतर जनसंख्या बाबा, तांत्रिकों आदि में अंधविश्वास रखती है। पाखंडी बाबा लोगों के मन में डर को पक्का करके उनका भरोसा जीत लेते हैं और लोग भी समस्या से छुटकारा पाने के लिए उनपर हद से ज्यादा विश्वास करते हैं। हर व्यक्ति को अपने जीवन में कोई न कोई समस्या होती है जिससे वह जल्दी से जल्दी से निजात पाना चाहता है और ऐसे में उसे यदि समस्या का हल करने वाले पाखंडी बाबा मिल जाते हैं तो वह उनपर अंधविश्वास करने लगता है। ये पाखंडी बाबा कहते हैं कि वो प्रेम विवाह, जायदाद संबधी समस्या, संतान सुख प्राप्ती आदि कि समस्या से छुटकारा दिला सकते हैं। अंधविश्वास की शिकार मुख्य रूप से महिलाएँ पाई जाती है। अंधविश्वास से मनुष्य को जान माल और इज्जत की हानि होती है। व्यक्ति इतना ज्यादा अंधविश्वासी हो चुका होता है कि वह हर काम पाखंडी बाबा के कहने के अनुसार करता है जिससे ये तांत्रिक उनसे मोटी रकम वसुलते है और कई बार बच्चों की बली भी देते हैं। जो महिलाएँ अपनी समस्या के समाधान को लिए बाबा के पास जाती है वो कई बार अपनी इज्जत भी गवाँ बैठती है। सरकार द्वारा काला जादु और नर बली पर प्रतिबंध लगाया गया है लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है लोगों में जागरूकता होना और उनकी सोच। लोगों को सारी चीजों को विग्यान से जोड़कर विचार विमर्श करके ही किसी पर विश्वास करना चाहिए और उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि भाग्य को कोई भी तांत्रिक नहीं बदल सकता है वह केवल निर्माता के हाथ में है। आदिम मनुष्य अनेक क्रियाओं और घटनाओं के कारणों को नहीं जान पाता था। वह अज्ञानवश समझता था कि इनके पीछे कोई अदृश्य शक्ति है। वर्षा, बिजली, रोग, भूकंप, वृक्षपात, विपत्ति आदि अज्ञात तथा अज्ञेय देव, भूत, प्रेत और पिशाचों के प्रकोप के परिणाम माने जाते थे। ज्ञान का प्रकाश हो जाने पर भी ऐसे विचार विलीन नहीं हुए, प्रत्युत ये अंधविश्वास माने जाने लगे। आदिकाल में मनुष्य का क्रिया क्षेत्र संकुचित था इसलिए अंधविश्वासों की संख्या भी अल्प थी। ज्यों ज्यों मनुष्य की क्रियाओं का विस्तार हुआ त्यों-त्यों अंधविश्वासों का जाल भी फैलता गया और इनके अनेक भेद-प्रभेद हो गए। अंधविश्वास सार्वदेशिक और सार्वकालिक हैं। विज्ञान के प्रकाश में भी ये छिपे रहते हैं। अभी तक इनका सर्वथा उच्द्वेद नहीं हुआ है।अंधविश्वासों का सर्वसम्मत वर्गीकरण संभव नहीं है। इनका नामकरण भी कठिन है। पृथ्वी शेषनाग पर स्थित है, वर्षा, गर्जन और बिजली इंद्र की क्रियाएँ हैं, भूकंप की अधिष्ठात्री एक देवी है, रोगों के कारण प्रेत और पिशाच हैं, इस प्रकार के अंधविश्वासों को प्राग्वैज्ञानिक या धार्मिक अंधविश्वास कहा जा सकता है। अंधविश्वासों का दूसरा बड़ा वर्ग है मंत्र-तंत्र। इस वर्ग के भी अनेक उपभेद हैं। मुख्य भेद हैं रोग निवारण, वशीकरण, उच्चाटन, मारण आदि। विविध उद्देश्यों के पूर्त्यर्थ मंत्र प्रयोग प्राचीन तथा मध्य काल में सर्वत्र प्रचलित था। मंत्र द्वारा रोग निवारण अनेक लोगों का व्यवसाय था। विरोधी और उदासीन व्यक्ति को अपने वश में करना या दूसरों के वश में करवाना मंत्र द्वारा संभव माना जाता था। उच्चाटन और मारण भी मंत्र के विषय थे। मंत्र का व्यवसाय करने वाले दो प्रकार के होते थे-मंत्र में विश्वास करने वाले और दूसरों को ठगने के लिए मंत्र प्रयोग करने वाले।
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