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विश्वास ही जीवन का आधार है' उस विषय पर
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विश्वास ही जीवन का आधार है
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हर धर्म अलग-अलग रूपों में एक ही शिक्षा देता है कि प्रभु पर भरोसा रखने से जीवन यात्रा सहज रहती है। पर क्या केवल विश्वास के सहारे जीना संभव है? मां की गोद में बैठा छोटा-सा बच्चा भी जरा सा झटका लगने पर अपने हाथ में जो कुछ आए उसे पकड़ लेता है, जैसे उसके सहारे नीचे गिरने से बच जाएगा। हम अपनी बुद्धि के कारण सोचते हैं कि भगवान उसी की मदद करते हैं जो अपनी मदद की खुद चेष्टा करता है। यह एक सीमा तक सच है। पर यही वजह है कि खुद को धार्मिक मानने वाले और हमेशा ईश्वर का नाम भजने वाले भी दैनिक जीवन की चिंताओं मुक्त नहीं हो पाते। किसी तरह जोड़तोड़ कर खुद ही अपने बिगड़े काम बनाने की कोशिश करते हैं। लेकिन जब कोई कठिन स्थिति आती है और लगता है कि अब चीजें हमारे काबू में नहीं हैं, तब हम पूरी तरह उसकी शरण में लौट जाते हैं। और सब कुछ उसके भरोसे छोड़ देते हैं। वह हमें कठिनाइयों से लड़ने की ही नहीं, उनके साथ जीने की ताकत भी देता है। वह कौन सी चीज है, जो हमारे विश्वास को डांवाडोल करती है? वह है अनिश्चितता! वह हमें लक्ष्य की ओर बढ़ने से पहले ही ठिठका देती है। हम जो कुछ करते हैं, उसका फल पहले से निश्चित कर लेना चाहते हैं, जबकि जीवन में कुछ भी निश्चित नहीं होता। थोड़ी उलझन, थोड़ी अनिश्चितता के बिना हम कुछ सीखने और आगे बढ़ने में समर्थ नहीं हो सकते। हम बदलाव से डरते हैं, पर उसे स्वीकारने में ही विकास है। आस्था हमें परिवर्तन के डर से बचा कर आगे बढ़ने में मदद करती है। टैगोर ने लिखा है कि भोर की रोशनी आने से पहले अंधेरे में ही गीत गाना शुरू करने वाली चिड़िया में सुबह के आने का पूर्ण विश्वास ही तो है। निरीश्वरवादी उसके अस्तित्व को नकारने पर भी उसे अपने ढंग से स्वीकार करते हैं। फ्रेंच दार्शनिक वाल्टेयर भगवान को नकारते थे। पर साथ-साथ यह भी कहते थे कि यदि आम आदमी में ईश्वर के प्रति अनास्था पैदा हो जाए, तो वह सबको नकारना शुरू कर देगा। इसी तरह इतिहासकार एडवर्ड गिबन जिन धार्मिक सिद्धांतों से नफरत करते थे, उन्हें भी सामाजिक दृष्टि से उपयोगी मानते थे। युंग ने एक बार अपने एक रोगी से कहा, तुम्हें कोई रोग नहीं है, सिवाय इसके कि तुम भगवान से लगाव खो बैठे हो। यह पूछने पर कि क्या वे स्वयं उनमें विश्वास करते हैं, वे बोले, मैं डॉक्टर हूं, पादरी नहीं। जब अविश्वासी भी विश्वास का महत्व मानता है तो आस्थावान के बारे में क्या कहा जाए। एक नव विवाहित जोड़ा नाव में नदी पार कर रहा था, तभी तूफान आ गया। सभी सवार घबराने लगे। लड़की ने अपने शांत पति से पूछा, क्या उसे डर नहीं लग रहा? सैनिक पति ने अपनी तलवार पत्नी के गले पर रखकर पूछा, क्या तुम्हें डर लग रहा है? उसने कहा, नहीं, क्योंकि मैं जानती हूं कि आप मुझे नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। पति ने उत्तर दिया, यही विश्वास मुझे अपने ईश्वर पर है। यही भरोसा संघर्ष की स्थिति में हमें ताकत देता है। उसके सदा साथ होने का एहसास हमें खतरों का सामना करने की हिम्मत देता है। तुलसी ने भक्त की भावना को सीधे-सादे शब्दों में इस प्रकार व्यक्त किया है कि यदि सच्चे मन से कठिनाई में याद किया जाए तो कोई अहित नहीं कर सकता है, जानकीनाथ सहाय करें जब, कौन बिगाड़ करे नर तेरो। खलील जिब्रान ने कहा, तुम्हारा जीवन इस पर निर्भर नहीं करता कि उसने तुम्हें क्या दिया है, बल्कि इस पर कि तुम्हारी जीवन के प्रति क्या प्रवृत्ति है। इस पर नहीं कि तुम पर क्या बीत रही है, बल्कि इस पर कि तुम्हारा मन उसे कैसे स्वीकार करता है। अपने लिए सिर्फ अच्छा मांगना हमारी हठधर्मी है, क्योंकि सबको अपने-अपने हिस्से का सुख- दुख लेना पड़ेगा।