आ) हिमालय हा वली पर्वताचे उदाहरण आहे.
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हिमालय भारत में स्थित एक प्राचीन पर्वत श्रृंखला है | हिमालय को पर्वतराज भी कहते हैं जिसका अर्थ है पर्वतों का राजा |। कालिदास तो हिमालय को पृथ्वी का मानदंड मानते हैं। हिमालय की पर्वतश्रंखलाएँ शिवालिक कहलाती हैं। सदियों से हिमालय की कन्दराओं (गुफाओं) में ऋषि-मुनियों का वास रहा है और वे यहाँ समाधिस्थ होकर तपस्या करते हैं । हिमालय आध्यात्म चेतना का ध्रुव केंद्र है। उत्तराखंड को श्रेय जाता है इस "हिमालयानाम् नगाधिराजः पर्वतः" का हृदय कहाने का। ईश्वर अपने सारे ऐश्वर्य- खूबसूरती के साथ वहाँ विद्यमान है। 'हिमालय अनेक रत्नों का जन्मदाता है ( अनन्तरत्न प्रभवस्य यस्य), उसकी पर्वत-श्रंखलाओं में जीवन औषधियाँ उत्पन्न होती हैं ( भवन्ति यत्रौषधयो रजन्याय तैल पुरत सुरत प्रदीपः), वह पृथ्वी में रहकर भी स्वर्ग है।( भूमिर्दिवभि वारूढं)। हिमालय एक पर्वत तन्त्र है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है। यह पर्वत तन्त्र मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियां- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2400 कि॰मी॰ की लम्बाई में फैली हैं।[2] इस चाप का उभार दक्षिण की ओर अर्थात उत्तरी भारत के मैदान की ओर है और केन्द्र तिब्बत के पठार की ओर है। इन तीन मुख्य श्रेणियों के आलावा चौथी और सबसे उत्तरी श्रेणी को परा हिमालय या ट्रांस हिमालय कहा जाता है जिसमें कराकोरम तथा कैलाश श्रेणियाँ शामिल है। हिमालय पर्वत 7 देशों की सीमाओं में फैला हैं।
फक्त हिमालयच नाही तर अरवली, रॉकी, अँडीज आणि आल्प्स सारखे जगप्रसिद्ध पर्वते वलीकारणामुळे निर्माण होणाऱ्या पर्वतांची उदाहरणे आहेत. जेव्हा पृथ्वीच्या आतील भागातून ऊर्जेचे वहन पृष्ठभागाकडे होते तेव्हा ह्या उर्जालहरींमुळे मृदू खडकांच्या थरावर क्षतिजांसमोर व एकमेकांच्या दिशेने दाब पडून एकप्रकारचे भुपृष्ठावर वलीकरण निर्माण होते. वलीकरण हि पृथ्वीत होणारी एक अंतर्गत हालचाल आहे. ह्या दाबामुळे वळ्या निर्माण होतात. दाब जास्त तर वळ्या प्रचंड परिणामी भूपृष्ठ उचलला जातो आणि वली पर्वतांची निर्मिती होते.