Social Sciences, asked by ssharma90754, 1 month ago

आंखों पर पट्टी बांधे हुए और हाथ में तराजू लिए हुए किसका प्रतीक है​

Answers

Answered by sps8dvanimittal
1

Answer:

BLIND JUSTICE

Explanation:

WRONG JUSTICE

Answered by AniketKumarSingh74
3

Answer:

अधिकांश न्यायालय भवनों में हम आंखों पर पट्टी बांधे और हाथ में तराजू लिए खडी एक महिला की प्रतिमा देख सकते हैं. जिसे न्याय की देवी कहा जाता है.

आरटीआई कार्यकर्ता दानिश खान ने सूचनाधिकार के तहत राष्ट्रपति के सूचना अधिकारी से न्याय की देवी के बारे में जानकारी मांगी थी. जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने भी उक्त जानकारी होने से इंकार कर दिया.

इसके बाद दानिश ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार को पत्र लिख कर ‘न्याय की प्रतीक देवी’ के बारे में जानकारी मांगी. जवाब में कहा गया कि इंसाफ का तराजू लिए, आंखों पर काली पट्टी बांधे देवी के बारे में कोई लिखित जानकारी उपलब्ध नहीं है. आरटीआई के जवाब में यह भी कहा गया कि संविधान में भी न्याय के इस प्रतीक चिह्न के बारे में कोई जानकारी दर्ज नहीं है. यह बात खुद मुख्य सूचना आयुक्त राधा कृष्ण माथुर ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए दानिश खानको बताई और कहा कि ऐसी किसी तरह की लिखित जानकारी नहीं है.

जहाँ तक मैं ने पढ़ा है, यह न्याय की देवी की अवधारण यूनानी देवी डिकी ( Dike) की कहानी पर आधारित है. कलात्मक दृष्टि से डाइक को हाथ में तराजू लिए दर्शाया जाता था. डिकी ज़्यूस (zuse) की पुत्री थीं ,और मनुष्यों का न्याय करती थीं. वैदिक संस्कृति में ज्यूस को द्योस: अर्थात् प्रकाश और ज्ञान का अधिष्ठात्री का देवता अर्थात् बृहस्पति कहा. उनका रोमन पर्याय थीं जस्टिशिया (Justitia)देवी, जिन्हें आंखों पर पट्टी बाँधे दर्शाया जाता था.

न्याय को तराजू से जोड़ने का विचार इससे कहीं अधिक पुराना है. यह विचार मिस्र के पौराणिक आख्यानों से यूनानी आख्यानों और वहां से ईसाई आख्यानों तक जा पहुंचा, जहां स्वर्गदूत माइकल ( एक फरिश्ता) को हाथ में तराजू लिए हुए दिखाया जाता है. अवधारणा यह है कि पाप से हृदय का भार बढ़ जाता है और पापी नरक में जा पहुंचता है. इसके विपरीत, पुण्य करने वाले स्वर्ग में जाते हैं. आंखों पर पट्टी यह दर्शाने के लिए थी कि ईश्वर की तरह कानून के समक्ष भी सब समान हैं.

कर्मों का लेखा-जोखा रखने की न्यायिक प्रणाली कई प्राचीन समाजों में भी दिखाई देती है.

इनमें भारत भी शामिल है, जहां चित्रगुप्त पुण्य और पाप का लेखा-जोखा रखते हैं. तराजू इसी का प्रतीक है.

यह जवाब बहुत सटीक तो नहीं है लेकिन आशा है कि आप थोड़े थोड़े संतुष्ट होंगे.

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