Hindi, asked by sawan9138, 1 year ago

आंसू कविता का मूल भाव स्पष्ट कीजिए

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Answered by ShresthGupta
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इन पंक्तियों में कवि अपने निविड़ जीवन के सुख दुखात्मक अनुभूति का चित्रण करते हुए कहता है कि जीवन  सुख और दुख की लीला भूमि है। यहाँ विरह और मिलन का परिणय हुआ करता है और शोक और आनन्द दोनों यहाँ नाचते रहते हैं ।

कवि प्रसाद को आज भी अपनी वेदना पर विश्वास है । प्रेमी के लिए सुख और दुख नियति का दान हैं। निसर्गतः दोनों में मौलिक अंतर नहीं है। केवल एक ही चेतना के दो रूप हैं। परिणय की पृष्ठ्भूमि देकर कवि प्रसाद निःसंकोच भाव से यह स्वीकार करते हैं कि संसार में विलास जीवन का वैभव आँखों में मद बनकर समाया है। वही विराट आकर्षण है, वही सुख का गठबन्धन है, किन्तु उसके अभाव में जो वेदना है, वही आँसू बनकर निकलती है।

मानव मन इस भौतिक जगत में प्रतिक्षण नयी नयी उलझनों में उलझता रहता है। वह सांसारिक जीवन जीता हुआ, आशा निराशा के क्षण जीता रहता है, मिलन विरह के गीत गाता रहता है। अब मिलन की आशा किरण उसे दिखायी देती है तो वह गाता है – चेतना लहर न उठेगी, जीवन समुद्र थिर होगा।” लेकिन निराशा के क्षण में उसका मन सहज भाव से कह बैठता है – “नाविक इस सूने तट पर, किन लहरों में खे लाया।”

कवि मानव जीवन की सम्पूर्ण विसंगतियों का पर्यालोचन करने के पश्चात भी विकल नहीं है अपितु मानवीय सुख के प्रति निष्ठावान है। कवि सुख दुख दोनों की अनुभूति प्राप्त करना चाहता है। वह सुख दुख को मन और आँख की खेल मिचौनी मानता है- “सुख दुख दोनों नाचेंगे, है खेल आँख और मन का।” 

आँख और मन का खेल सुख दुख की आँख मिचौनी कैसे? आँखों में प्रिय का सौन्दर्य समाया है अतः यही सुख है। एक स्थान पर उन्होंने लिखा है, “स्वास्थ्य सरलता तथा सौन्दर्य को प्राप्त कर लेने पर प्रेम प्याले का एक घूँट पीना पिलाना ही आनन्द है।”
मुझे उम्मीद है इससे आपको मदद मिली होगी।
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