आंसु कविता का मूलभाव क्या है
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कवि मानव जीवन की सम्पूर्ण विसंगतियों का पर्यालोचन करने के पश्चात भी विकल नहीं है अपितु मानवीय सुख के प्रति निष्ठावान है। कवि सुख दुख दोनों की अनुभूति प्राप्त करना चाहता है। वह सुख दुख को मन और आँख की खेल मिचौनी मानता है- “सुख दुख दोनों नाचेंगे, है खेल आँख और मन का।”
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