Hindi, asked by chethanachethu466, 2 months ago

आ तब
ऑक्सीजन प्रति मिनट की दर से लेकर चढ़
या कि
ही थी। मेरे रेगुलेटर पर जैसे ही उसने
3 मई
प्रखर
दलों

त्
से
ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई मुझे कठिन चढ़ाई
आसान लगने लगी।
दक्षिणी शिखर के ऊपर हवा की गति बढ़
गई थी। उस ऊँचाई पर तेज़ हवा के झोंके
भुरभुरे बर्फ के कणों को चारों तरफ उड़ा रहे
जिससे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। मैंने
देखा कि थोड़ी दूर तक कोई ऊँची चढ़ाई नहीं
है। ढलान एकदम सीधी नीची चली गई है।
मेरी साँस मानो एकदम रुक गई थी। मुझे लगा
कि सफलता बहुत नज़दीक है। 23 मई, 1984
के दिन दोपहर के 1 बजकर 7 मिनट पर मैं
एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। एवरेस्ट की चोटी
पर पहुँचनेवाली मैं प्रथम भारतीय महिला थी।
एवरेस्ट की चोटी पर इतनी जगह नहीं थी कि दो व्यक्ति साथ-साथ खड़े
हो सकें। चारों तरफ हज़ारों मीटर लंबी सीधी ढलान को देखते हुए हमारे सामने
मुख्य प्रश्न सुरक्षा का था। हमने फावड़े से पहले बर्फ की खुदाई कर अपने आपको
सुरक्षित रूप से स्थिर किया। इसके बाद मैं अपने घुटनों के बल बैठी। बर्फ पर
अपने माथे को लगाकर मैंने सागरमाथे के ताज का चुंबन किया। बिना उठे ही
मैंने अपने थैले से हनुमान चालीसा और दुर्गा माँ का चित्र निकाला। मैंने इन्हें
अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा और छोटी-सी पूजा करके इनको बर्फ में
दबा दिया। उठकर मैं अपने रज्जु नेता अंग दोरजी के प्रति आदर भाव से झुकी
उन्होंने मुझे गले लगाया। कुछ देर बाद सोनम पुलजर पहुँचे और उन्होंने फोट
लिए।
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Answered by ms3238293
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Answer:

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Explanation:

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