आबू के परमार वंश का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
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आबू के परमार- आबू के परमार वंश का संस्थापक 'धूमराज' था, लेकिन इनकी वंशावली उत्पलराज से प्रारम्भ होती है। ... गुजरात के शासक मूलराज सोलंकी से पराजित होने के कारण आबू के शासक धरणीवराह को राष्ट्रकूट धवल का शरणागत होना पड़ा। लेकिन कुछ समय बाद धरणीवराह ने आबू पर पुनः अधिकार कर लिया। उसके बाद महिपाल का 1002 ई.
आबू के परमार वंश का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
आबू के परमार वंश का परिचय
आबू का परमार वंश का संस्थापक का नाम धूमराज था। इनके पड़ोस में गुजरात राज्य था इसलिए उसके शासकों से आबू के परमार वंश के शासकों का निरंतर संघर्ष चलता रहता था। गुजरात के शासक मूलराज सोलंकी से युद्ध में आबू के शासक धुरणीवराह को हार का सामना करना पड़ा और फिर उसे इधर-उधर भटकना पड़ा। कुछ समय बाद धुरणीवराह ने अपनी सेना को संगठित किया और आबू पर पुनः अपना अधिकार स्थापित कर लिया। उसके बाद महिपाल आबू का शासक बना। लेकिन उसने गुजरात के सोलंकी शासकों के आगे हार कर उनकी अधीनता को स्वीकार कर लिया।
महिपाल के पुत्र धंधुक ने सोलंकी की अधीनता से मुक्त होने का प्रयास किया। इस कारण सोलंकी शासक भीमदेव ने आबू पर आक्रमण कर उस पर अपना अधिकार जमा लिया। उसने विमलशाह को आबू का प्रशासक बनाया। विमलशाह ने धंधुक और भीमदेव में संधि करा दी। धंधुक के बाद आबू पर कृष्णदेव ने शासन किया और उस के शासनकाल में परमार एवं सोलंकियों के बीच संबंध बिगड़ते गए।
कृष्णदेव के बाद उसका पुत्र विक्रम देव परमार का शासक बना । विक्रम देव के बाद सोमेश्वर और फिर उसका पुत्र शिवम सिंह शासक बना। उसके पश्चात प्रताप सिंह और विक्रम से आबू के शासक बने। आबू का अंतिम शासक चामुंड राज था।
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