आभयान
मेरा प्रिय खेल
ग) काव्यारा का अचत ॥षक पाए ।
निम्नलिखित काव्यांश का संदर्भ-प्रसंग सहित भ
ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दार
ज्यौं जल माह तेल की गागरि, बूंद न तार्को लाउ
अथवा
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