आचार्य महाप्रज्ञ मेरी दृष्टि मे पर निबंध
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आचार्य महाप्रज्ञ मेरी दृष्टि में – निबंध
प्रज्ञापुरूष आचार्य महाप्रज्ञ महान् दार्शनिक, कवि, वक्ता एवं साहित्यकार हैं। वे प्रेक्षाध्यान पद्धति के महान अनुसंधाता एवं प्रयोक्ता हैं।
आचार्य महाप्रज्ञ का जन्म विक्रम संवत् 1777 की आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी अर्थात 14 जून 1920 को टमकोर (राजस्थान) के चोरड़िया परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री तोलारामजी एवं माता का नाम बालूजी था। माता-पिता ने उनका नाम नथमल रखा। उनके बचपन में उनके पिता देहान्त हो गया। उनकी माता अत्यन्त धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं जिनका संपूर्ण प्रभाव बालक नथमल पर पड़ा। बालक की धार्मिक चेतना जाग गयी और दोनो माता-पुत्र धर्म के पथ पर चल पड़े।
कालान्तर में माघ शुक्ला दशमी को सरदार शहर में बालक नथमल ने मात्र दस वर्ष की आयु में अपनी माता के साथ पूज्य कालूगणी से दीक्षा ग्रहण की। उसके बाद वो मुनि नथमल के रूप में जाने जाने लगे।
मुनि नथमल अपने सौम्य एवं सरल स्वभाव के कारण शीघ्र ही सबके प्रिय बन गए। उनके गुरु पूज्य कालूगणी का उन पर परम स्नेह था। कालूगणी के निर्देश से उन्हें विद्या-गुरू के रूप में मुनि तुलसी (आचार्य तुलसी) का सानिध्य मिला। मुनि नथमल अपने गुरुओं से विविध विषयों का ज्ञान प्राप्त किया। दर्शन, न्याय, व्याकरण, कोष, मनोविज्ञान, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि शायद ही कोई ऐसा विषय हो,जो उनकी प्रज्ञा की पकड़ से अछूता रहा हो। जैनागमों के गन्भीर अध्ययन के साथ साथ उन्होंने भारतीय एवं भारतीयेतर सभी दर्शनों का अध्ययन किया। वे संस्कृत, प्राकृत एवं हिन्दी भाषा के पूर्ण ज्ञाता हैं। वे संस्कृत भाषा के मूर्धन्य विद्वान हैं।
आचार्यश्री तुलसी ने अपने आचार्यपद का विर्सजन कर युवाचार्य महाप्रज्ञ को तेरापंथ समाज के आचार्य पद पर प्रतिष्ठित कर दिया। आचार्य महाप्रज्ञ को आचार्यश्री तुलसी जैसे समर्थ गुरु मिले तो आचार्यश्री तुलसी को आचार्य महाप्रज्ञ जैसे समर्पित शिष्य एवं योग्य उतराधिकारी मिले। विश्व के पटल पर आचार्यश्री तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जैसी आध्यात्मिक विभूतियां गुरु शिष्य के रूप में शताब्दियों के बाद प्रकट होती है।
आचार्य महाप्रज्ञ कुशल प्रवचनकार होने के साथ साथ एक महान् लेखक, महान श्रुतधार, और महान साहित्कार भी हैं। उनकी वाणी से निकला हर शब्द साहित्य बन जाता है। उन्होंने विविध विषयों पर शताधिक ग्रन्थ लिखे हैं। जिसमें उनका मौलिक चिन्तन प्रकट हुआ है। उनके ग्रन्थ जहां साहित्य जगत की अमूल्य धरोहर हैं। शोध विद्वानों के लिए आचार्य महाप्रज्ञ एक विश्वकोष है।
आचार्य महाप्रज्ञ के ज्ञान और चेतना से जैन समाज का तेरापंथ तो लाभान्वित हुआ ही है साथ ही सम्पूर्ण मानव जाति भी लाभान्वित हुई है।