आचार्य नरेंद्र देव ने युवकों के लिए कौन-कौन से विचार अभिव्यक्त किए उनके विचारों पर प्रकाश डालिए
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Answer:
आचार्य नरेंद्र देव (1889-19 फ़रवरी 1956) भारत के प्रमुख स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, पत्रकार, साहित्यकार एवं शिक्षाविद थे। वे कांग्रेस समाजवादी दल के प्रमुख सिद्धान्तकार थे।
फैजाबाद स्थित आचार्य नरेन्द्र देव का पारिवारिक घर
विलक्षण प्रतिभा और व्यक्तित्व के स्वामी आचार्य नरेन्द्रदेव अध्यापक के रूप में उच्च कोटि के निष्ठावान अध्यापक और महान शिक्षाविद् थे। काशी विद्यापीठ के आचार्य बनने के बाद से यह उपाधि उनके नाम का ही अंग बन गई। देश को स्वतंत्र कराने का जुनून उन्हें स्वतंत्रता आन्दोलन में खींच लाया और भारत की आर्थिक दशा व गरीबों की दुर्दशा ने उन्हें समाजवादी बना दिया।
Answer:
आचार्य नरेन्द्रदेव ने एक बार कहा था, 'मेरे जीवन में सदा दो प्रवृत्तियां रहीं हैं। एक पढ़ने-लिखने की, दूसरी राजनीति की। इन दोनों में संघर्ष रहता है। यदि दोनों की सुविधा एक साथ मिल जाए तो मुझे बड़ा परितोष रहता है और यह सुविधा में काशी विद्यापीठ में मिली।
Explanation:
जन्म: 31 अक्टूबर, 1889, सीतापुर, उत्तर प्रदेश
निधन: 19 फ़रवरी, 1956, मद्रास
कार्य: समाजवादी, विचारक, शिक्षाशास्त्री और देशभक्त
नरेन्द्र देव भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, साहित्यकार, समाजवादी, विचारक और शिक्षाशास्त्री थे। हिन्दी, संस्कृत, फ़ारसी, अंग्रेज़ी, पाली आदि भाषाओं के ज्ञाता नरेन्द्र देव स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान कई बार जेल भी गए। विलक्षण प्रतिभा और व्यक्तित्व के धनी आचार्य नरेन्द्रदेव उच्च कोटि के निष्ठावान अध्यापक और महान शिक्षाविद् थे। वाराणसी स्थित काशी विद्यापीठ में आचार्य बनने के बाद से ‘आचार्य’ की उपाधि उनके नाम का एक अभिन्न अंग बन गई। देश की आजादी का जुनून उन्हें स्वतंत्रता आन्दोलन में खींच लाया। वह भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के सक्रीय सदस्य थे और सन 1916 से 1948 तक ‘ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी’ के सदस्य भी रहे।
प्रारंभिक जीवन
नरेन्द्र देव का जन्म 31 अक्टूबर, 1889 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में हुआ था। उनके बचपन का नाम अविनाशीलाल था। उनके पिता बलदेव प्रसाद अपने समय के जाने-माने वकील थे। बालक अविनाशी का बचपन मुख्यतः फैजाबाद नगर में बीता। बलदेव प्रसाद धार्मिक प्रवित्ति के इंसान थे और राजनीति में भी थोड़ी बहुत दिलचस्पी लेते थे जिसके कारण उनके घर पर इन क्षेत्रों के लोगों का आना-जाना लगा रहता था। इस तरह बालक नरेन्द्र देव को स्वामी रामतीर्थ, पंडित मदनमोहन मालवीय, पं॰ दीनदयालु शर्मा आदि के संपर्क में आने का मौका मिला। धीरे-धीरे उनके मन में भारतीय संस्कृति के प्रति अनुराग उपजा और फिर बड़ा होने पर देश की सामाजिक और राजनैतिक दशा ने राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया।
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