Hindi, asked by kamalsinghawasya143, 6 months ago

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल lekhk preetay​

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Answered by monalika55
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रामचंद्र शुक्ल (जन्म-4 अक्तूबर, 1884, उत्तर प्रदेश; मृत्यु-1941 ई.) बीसवीं शताब्दी के हिंदी के प्रमुख साहित्यकार थे। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों में हिंदी साहित्य का इतिहास प्रमुख है, जिसका हिंदी पाठ्यक्रम को निर्धारित करने में प्रमुख स्थान है। रामचंद्र शुक्ल जी का जन्म बस्ती जिले के अगोना नामक गांव में सन् 1884 ई

कार्यक्षेत्र

रामचंद्र शुक्ल जी के पिता ने शिक्षा के क्षेत्र में इन पर उर्दू और अंग्रेजी पढ़ने के लिए जोर दिया तथा पिता की आंख बचाकर वे हिंदी भी पढ़ते रहे। सन् 1901 ई. में उन्होंने मिशन स्कूल से स्कूल फाइनल की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा प्रयाग के कायस्थ पाठशाला इंटर कॉलेज में एफए (बारहवीं) पढ़ने के लिए आए। गणित में कमजोर होने के कारण उन्होंने शीघ्र ही उसे छोड़कर प्लीडरशिप की परीक्षा उत्तीर्ण करनी चाही, उसमें भी वे असफल रहे। परंतु इन परीक्षाओं की सफलता या असफलता से अलग वे बराबर साहित्य, मनोविज्ञान, इतिहास आदि के अध्ययन में लगे रहे। मिर्जापुर के पंडित केदारनाथ पाठक, बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ के संपर्क में आकर उनके अध्ययन-अध्यवसाय को और बल मिला। यहीं पर उन्होंने हिंदी, उर्दू, संस्कृत एवं अंग्रेजी के साहित्य का गहन अनुशीलन प्रारंभ कर दिया था, जिसका उपयोग वे आगे चल कर अपने लेखन में जमकर कर सके।

रचनाएं

अनुवाद : शुक्ल जी का साहित्यिक व्यक्तित्व विविध पक्षों वाला है। उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन के प्रारंभ में लेख लिखे हैं और फिर गंभीर निबंधों का प्रणयन किया है, जो चिंतामणि (दो भाग) में संकलित है। उन्होंने ब्रजभाषा और खड़ीबोली में फुटकर कविताएं लिखीं तथा एडविन आर्नल्ड के ‘लाइट ऑफ एशिया’ का ब्रजभाषा में ‘बुद्धचरित’ के नाम से पद्यानुवाद किया। शुक्ल जी ने मनोविज्ञान, इतिहास, संस्कृति, शिक्षा एवं व्यवहार संबंधी लेखों एवं पत्रिकाओं के भी अनुवाद किए हैं तथा जोसेफ एडिसन के प्लेजर्स ऑफ इमेजिनेशन का ‘कल्पना का आनंद’ नाम से एवं राखाल दास वंद्योपाध्याय के शशांक उपन्यास का भी हिंदी में रोचक अनुवाद किया। रामचंद्र शुक्ल ने जायसी ग्रंथावली तथा बुद्धचरित की भूमिका में क्रमशः अवधी तथा ब्रजभाषा का भाषा-शास्त्रीय विवेचन करते हुए उनका स्वरूप भी स्पष्ट किया है। अनुवादक के रूप में उन्होंने शशांक जैसे श्रेष्ठ उपन्यास का अनुवाद किया है। अनुवाद के रूप में उनकी शक्ति या निर्बलता यह थी कि उन्होंने अपनी प्रतिभा या अध्ययन के बल पर उनमें अपेक्षित परिवर्तन कर लिए हैं। शशांक मूल बंगला में दुःखांत है, पर उन्होंने उसे सुखांत बना दिया है। अनुवादक की इस प्रवृत्ति को आदर्श भले ही न माना जाए, पर उसके व्यक्तित्व की शक्ति एवं जीवन का प्रतीक अवश्य माना जा सकता है।

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