आचरण की मौन भाषा की व्यख्यान
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आचरण की सभ्यतामय भाषा सदा मौन रहती है। इस भाषा का निघण्टु शुद्ध श्वेत पत्रों वाला है। इसमें नाममात्र के लिए भी शब्द नहीं। यह सभ्याचरण नाद करता हुआ भी मौन है, व्याख्यान देता हुआ भी व्याख्यान के पीछे छिपा है, राग गाता हुआ भी राग के सुर के भीतर पड़ा है।
Its the answer...
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उत्तर:लेखक कहते हैं कि दूसरे व्यवहारों की तरह आचरण की भी अपनी एक भाषा होती है, किन्तु वह भाषा मौन की होती है ।। इसका दूसरे मनुष्य पर गुप्त प्रभाव पड़ता है ।। आचरण के कोश में नाममात्र को भी शब्द नहीं है
व्याख्या:
मिठास में आचरण की सभ्यता मौन रूप से खुली हुई है। नम्रता, दया, प्रेम और उदारता सबके सब सभ्यताचरण की भाषा के मौन व्याख्यान हैं। मनुष्य के जीवन पर मौन व्याख्यान का प्रभाव चिरस्थायी होता है और उसकी आत्मा का एक अंग हो जाता है।"आचरण में वह अपूर्व शक्ति है, जो व्यक्ति को कुछ से कुछ बना देती है ।। यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में आचरण का पालन करता हो और कला, साहित्य व संगीत में भी रुचि रखता हो तो मात्र आचरण की पवित्रता के कारण ही उसे इन कलाओं में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त हो जाती है ।
निष्कर्ष:इसे सुनें
आचरण की सभ्यतामय भाषा सदा मौन रहती है। इस भाषा का निघण्टु शुद्ध श्वेत पत्रों वाला है। इसमें नाममात्र के लिए भी शब्द नहीं। यह सभ्याचरण नाद करता हुआ भी मौन है,
व्याख्या:
मिठास में आचरण की सभ्यता मौन रूप से खुली हुई है। नम्रता, दया, प्रेम और उदारता सबके सब सभ्यताचरण की भाषा के मौन व्याख्यान हैं। मनुष्य के जीवन पर मौन व्याख्यान का प्रभाव चिरस्थायी होता है और उसकी आत्मा का एक अंग हो जाता है।"आचरण में वह अपूर्व शक्ति है, जो व्यक्ति को कुछ से कुछ बना देती है ।। यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में आचरण का पालन करता हो और कला, साहित्य व संगीत में भी रुचि रखता हो तो मात्र आचरण की पवित्रता के कारण ही उसे इन कलाओं में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त हो जाती है ।
निष्कर्ष:इसे सुनें
आचरण की सभ्यतामय भाषा सदा मौन रहती है। इस भाषा का निघण्टु शुद्ध श्वेत पत्रों वाला है। इसमें नाममात्र के लिए भी शब्द नहीं। यह सभ्याचरण नाद करता हुआ भी मौन है,
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